varalakshmi vratham
Varalakshmi vratam kab hai 2023: वरलक्ष्मी व्रतम् रखने से माता लक्ष्मी द्वारा सेहत और समृद्धि का वरदान मिलता है। भगवान श्रीहरि विष्णु की पत्नी वरलक्ष्मी को महालक्ष्मी का ही एक रूप माना जाता है। दक्षिण भारत में इस व्रत को रखने का खास प्रचलन है। आओ जानते हैं व्रत का मुहूर्त और पूजा विधि।
कब रखा जाएगा वरलक्ष्मी का व्रत?
इस बार श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को वरलक्ष्मी का व्रत रखा जाएगा। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 25 अगस्त 2023 शुक्रवार को रखा जाएगा।
वरलक्ष्मी व्रत की पूजा का शुभ मुहूर्त:
अभिजीत मुहूर्त : दोपहर 12:15 से 01:06 तक।
विजय मुहूर्त : दोपहर 02:47 से 03:37 तक।
अमृत काल : 25 अगस्त 12:03 एएम से पूरे दिन।
गोधूलि मुहूर्त : शाम को 06:59 से 07:22 तक।
कौन है मां वरलक्ष्मी- Who is Mata Varalakshmi?
कहते हैं कि वरलक्ष्मी का अवतार क्षीर सागर से प्रकट हुआ था। इसीलिए उनका वर्णन दूधिया सागर के रंग के रूप में किया गया है और वे उसी रंग के वस्त्र धारण करती हैं।
ऐसा माना जाता है कि देवी का वरलक्ष्मी रूप वरदान देता है और अपने भक्तों की सभी इच्छाओं को पूरा करता है। इसलिए देवी के इस रूप को वर+लक्ष्मी अर्थात वरदान देने वाली देवी लक्ष्मी के नाम से जाना जाता है।
वरलक्ष्मी पूजा विधि- Varalakshmi puja vidhi:
वरलक्ष्मी पूजा विधि में पूजा चरण दिवाली के दौरान महालक्ष्मी पूजा के समान हैं।
इसमें डोरक और वायना के लिए पूजा चरण और मंत्र शामिल हैं।
वरलक्ष्मी पूजा के दौरान बांधे जाने वाले पवित्र धागे को डोरक के नाम से जाना जाता है।
वरलक्ष्मी को अर्पित की जाने वाली मिठाई को वयना के नाम से जाना जाता है।
प्रातः काल नित्य कर्मों से निपटकर पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें।
पूजा स्थान पर लकड़ी का पाट लगाएं और उस पर लाल रंग का साफ वस्त्र बिछाएं।
अब उस पर माता लक्ष्मी और गणेशजी की मूर्ति स्थापित करें।
सभी मूर्ति या चित्र को जल छिड़कर स्नान कराएं और फिर व्रत का संकल्प लें।
अब मूर्ति या तस्वीर के दाहिने ओर चावल की ढेरी के उपर जलभरा कलश रखें।
कलश के चारों ओर चंदन लगाएं, मौली बांधें और कलश की पूजा करें।
अब माता लक्ष्मी और गणेश के समक्ष धूप-दीप और घी का दीपक प्रज्वलित करें।
इसके बाद फूल, दूर्वा, नारियल, चंदन, हल्दी, कुमकुम, माला, नैवेद्य अर्पित करें यानी षोडोषपचार पूजा करें।
मां वरलक्ष्मी को सोल श्रृंगार अर्पित करें और उन्हें भोग लगाएं।
इसके बाद माता के मंत्रों का जाप करें।
अंत में माता की आरती करें। आरती करके सभी के बीच प्रसाद का वितरण कर दें।
पूजा और आरती के बाद वरलक्ष्मी व्रत कथा का पाठ करें।