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श्री विचित्रवीर हनुमान मारुति स्तोत्रम्

om namo bhagwate vichitra veer hanuman stotra: 17वीं सदी के महान संत समर्थ रामदास स्वामी ने मारुति स्तोत्र की रचना की है। यहां, समर्थ रामदास स्वामी मारुति (हनुमान) का वर्णन करते हैं और मारुति स्तोत्र के विभिन्न छंदों में उनकी स्तुति करते हैं। पहले 13 श्लोक मारुति का वर्णन करते हैं, और बाद के 4 फलश्रुति (या इस स्तोत्र का पाठ करने से क्या गुण/लाभ प्राप्त होते हैं) हैं। जो कोई भी मारुति स्तोत्र का पाठ करता है, श्री हनुमान के आशीर्वाद से उसकी सभी परेशानियां, कठिनाइयां और चिंताएं दूर हो जाती हैं। वे अपने सभी शत्रुओं और सभी बुरी चीजों से परेशानी मुक्त हो जाते हैं। इसमें कहा गया है कि स्तोत्र का 1100 बार पाठ करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
 

 

श्री विचित्रवीर हनुमान मारुति स्तोत्रम् 
 

ॐ नमो भगवते विचित्रवीरहनुमते प्रलयकालानलप्रभाप्रज्वलनाय।

 

प्रतापवज्रदेहाय। अंजनीगर्भसंभूताय।

प्रकटविक्रमवीरदैत्यदानवयक्षरक्षोगणग्रहबंधनाय।

 

भूतग्रहबंधनाय। प्रेतग्रहबंधनाय। पिशाचग्रहबंधनाय।

शाकिनीडाकिनीग्रहबंधनाय। काकिनीकामिनीग्रहबंधनाय।

 

ब्रह्मग्रहबंधनाय। ब्रह्मराक्षसग्रहबंधनाय। चोरग्रहबंधनाय।

मारीग्रहबंधनाय। एहि एहि। आगच्छ आगच्छ। आवेशय आवेशय।

 

मम हृदये प्रवेशय प्रवेशय। स्फुर स्फुर। प्रस्फुर प्रस्फुर। सत्यं कथय।

व्याघ्रमुखबंधन सर्पमुखबंधन राजमुखबंधन नारीमुखबंधन सभामुखबंधन

 

शत्रुमुखबंधन सर्वमुखबंधन लंकाप्रासादभंजन। अमुकं मे वशमानय।

क्लीं क्लीं क्लीं ह्रुीं श्रीं श्रीं राजानं वशमानय।

 

श्रीं हृीं क्लीं स्त्रिय आकर्षय आकर्षय शत्रुन्मर्दय मर्दय मारय मारय

चूर्णय चूर्णय खे खे

श्रीरामचंद्राज्ञया मम कार्यसिद्धिं कुरु कुरु

ॐ हृां हृीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः फट् स्वाहा

विचित्रवीर हनुमत् मम सर्वशत्रून् भस्मीकुरु कुरु।

हन हन हुं फट् स्वाहा॥

एकादशशतवारं जपित्वा सर्वशत्रून् वशमानयति नान्यथा इति॥

 

इति श्रीमारुतिस्तोत्रं संपूर्णम्॥

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