Pushkar Sarovar snan : कार्तिक पूर्णिमा के दिन पुष्करजी में स्नान करने का खास महत्व माना गया है। यहां पर प्रतिवर्ष कार्तिक मास का मेला लगता है। यह स्थान भारत के राज्य राजस्थान में है। प्रयागजी को तीर्थराज और पुष्करजी को तीर्थ गुरु कहा गया है। पुष्करजी की महिमा पुराणों में मिलती है। पुष्कर को सभी तीर्थों का गुरु माना गया है। मान्यता है कि जो भी व्यक्ति चारधाम तीर्थयात्रा करता है और वह जब तक पुष्करजी में स्नान नहीं कर लेता तब तक उसकी यात्रा को अधूरा ही माना जाता है। इस बार 15 नवंबर को होगा पुष्कर स्नान।
1. कार्तिक स्नान : पुस्करजी में स्नान करने से जातक के पापों का क्षय होता है और उसे जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा मिलता है। पुष्कर मेले के दौरान आंवला नवमी पर भी स्नान कर महिलाएं आंवले के पेड़ की पूजा करती हैं। यह मान्यता भी है कि इस झील में डुबकी लगाने से पापों का नाश होता है।
2. पुष्कर जी मेला : ब्रह्माजी ने पुष्करजी में कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णमासी तक यज्ञ किया था जिसकी स्मृति में अनादिकाल से यहां कार्तिक मेला लगता आ रहा है। सैकड़ों श्रद्धालु पुष्कर सरोवर की महाआरती करते हैं। इसके बाद आतिशबाजी के धूमधड़ाके से पुष्कर सरोवर का नजारा ही बदल जाता है। सरोवर के ब्रह्मा घाट पर फूल बंगला भी सजाया जाता है। पुष्कर मेला मैदान पर पशुओं की खरीदी-बिक्री भी होती है। पशुओं में खासकर ऊंट और घोड़ों की खूब बिक्री होती है।
3. पुष्करजी देव दिवाली : पुष्करजी में कई देशी और विदेशी पर्यटक आते-जाते रहते हैं इसलिए यहां पर दीपावली और देव का उत्सव अलग ही अंदाज में मनाया जाता है। यहां की दिवाली देशभर में प्रसिद्ध है। पूरे शहर को दीपों से सजाया जाता है। पुष्कर झील के आसपास दिवाली के दीये जब जलाए जाते हैं तो पूरा क्षेत्र ऐसा नजर आता है, जैसे झील में सूर्य उतर आया हो। यहां पर दिवाली पर 5 दिनों का भव्य उत्सव, मेला और समारोह होता है जिसे देखने के लिए देश और विदेश से लोग आते हैं।
5. ब्रह्मा मंदिर : पुष्कर के मुख्य बाजार के अंतिम छोर पर ब्रह्माजी का मंदिर बना है। यहीं पर ब्रह्माजी ने यज्ञ किया था। आदिशंकराचार्य ने संवत् 713 में ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना की थी। मंदिर का वर्तमान स्वरूप गोकलचंद पारेख ने 1809 ई. में बनवाया था। यह मंदिर विश्व में ब्रह्माजी का एकमात्र प्राचीन मंदिर है। मंदिर के पीछे रत्नागिरि पहाड़ पर जमीन तल से 2,369 फुट की ऊंचाई पर ब्रह्माजी की प्रथम पत्नी सावित्री का मंदिर है। यज्ञ में शामिल नहीं किए जाने से कुपित होकर सावित्री ने केवल पुष्कर में ब्रह्माजी की पूजा किए जाने का श्राप दिया था। ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना के लिए पुष्करजी में यज्ञ का आयोजन किया था।
6. गायत्री मंदिर : आदिशंकराचार्य ने संवत् 713 में ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना की थी। यहां पर माता गायत्री की प्रतिमा भी विराजमान है। कहते हैं कि पुष्कर में ही यज्ञ के दौरान सावित्री के अनुपस्थित होने की स्थिति में ब्रह्मा ने वेदों की ज्ञाता विद्वान स्त्री गायत्री से विवाह कर यज्ञ संपन्न किया था। उल्लेखनीय है कि हरिद्वार शांतिकुंज वाले गायत्री परिवार ने देश-दुनिया में गायत्री शक्तिपीठ स्थापित कर रखे हैं। वहां पर आप गायत्री मंदिर में माता गायत्री के दर्शन कर सकते हैं।
7. सावित्री माता मंदिर : पुष्कर में रत्नागिरि पहाड़ी पर स्थित सावित्री माता का प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर भगवान ब्रह्मा की पत्नी देवी सावित्री को समर्पित है। सावित्री मंदिर काफी ऊंचाई पर स्थित है जिसकी वजह से मंदिर से पुष्कर शहर और आस-पास की सभी घाटियों का दृश्य काफी साफ दिखाई देता है।