क्रिसमस का पर्व परंपरा से 25 जनवरी को मनाए जाने का प्रचलन है। क्रिसमस के इतिहास को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार उनका जन्म 25 दिसंबर को तो कुछ के अनुसार 7 जनवरी को हुआ था। बहुतों का मानना है कि बसंत ऋतु की किसी तारीख को हुआ था। ईसाई रोमन सम्राट कॉन्सटेंटाइन के शासनकाल में 336 में पहली बार क्रिसमस मनाया गया था। शोधकर्ता मानते हैं कि ईसा मसीह के जन्म के समय का जो वर्णन मिलता है वह वसंत ऋतु की ओर संकेत करता है। वसंत ऋतु मार्च और अप्रैल के मध्य रहती है। ALSO READ: Christmas 2024 : रेड, शिमरी या वेलवेट? जानें क्रिसमस पार्टी के लिए बेस्ट आउटफिट आइडियाज
15 देशों में 7 जनवरी को मनाया जाएगा क्रिसमस : रूस, इजराइल, मिस्र, यूक्रेन, बु्ल्गारिया, माल्डोवा, मैक्डोनिया, इथियोपिया, जॉर्जिया, ग्रीस, रोमानिया, सर्बिया, बेलारूस, मोंटेनेग्रो, कजाखस्तान। दरअसल ग्रेगोरियन और जूलियन कैंलेडर में अंतर होने के कारण ऐसा है। ये लोग जूलियन कैलेंडर को फॉलो करते हैं। यह भी कहते हैं कि पहले 7 जनवरी को ही क्रिसमस डे मनाया जाता था। 1752 में जब इंग्लैंड ने ग्रेगोरियन कैलेंडर अपनाना शुरू किया तो जूलियन कैलेंडर के साथ अंतर को पूरा करने के लिए दिनों को हटा दिया गया। कई लोगों ने इस बदलाव को स्वीकार नहीं किया और जूलियन कैलेंडर का उपयोग करना पसंद किया। अर्मेनियाई अपोस्टोलिक चर्च 6 जनवरी को एपिफेनी के साथ क्रिसमस मनाता है। रविवार सबसे पहला ईसाई उत्सव था। दूसरी शताब्दी में, पुनरुत्थान एक अलग दावत बन गया और 6 जनवरी को पूर्वी चर्चों में एपिफेनी मनाया जाने लगा। एपिफेनी यानी यह रहस्योद्घाटन कि यीशु ईश्वर का पुत्र था।ALSO READ: क्रिसमस पर स्कीइंग और स्नो एन्जॉय करने के लिए ये डेस्टिनेशन हैं बेस्ट
क्या बाइबल में है जन्म का दिन उल्लेखित?
कहते हैं कि बाइबल में ईसा के जन्म का कोई दिन नहीं बताया गया है। न्यू कैथोलिक इनसाइक्लोपीडिया और इनसाइक्लोपीडिया ऑफ अरली क्रिश्चियानिटी में भी इसका कोई जिक्र नहीं मिलता है। बाइबल में यीशु मसीह के जन्म की कोई निश्चित तारीख नहीं दी गयी है। बाइबल में यीशु के जन्म के समय की दो घटनाओं का जिक्र मिलता है जिससे यह अंदाजा लगाया जाता है कि उनका जन्म कब हुआ था।
1. पहली घटना : पहली घटना यह कि यीशु के जन्म के कुछ ही समय पहले सम्राट ऑगस्टस ने यह आदेश जारी किया कि उसके राज्य के सभी लोग अपना अपना नाम दर्ज कराएं। यीशु के माता पिता नाम दर्ज कराने ही जा रहे थे कि रास्ते में यीशु का का जन्म हुआ।-। (लूका 2:1-3)। चूंकि अधिकर लोगों को पहले पैदल ही सफर करना होता था तो यह संभव नहीं था कि ऑगस्टस कड़ाके की ठंड में यह आदेश देता। इससे पहले से भड़की जनता और भड़क जाती।
2. दूसरी घटना : दूसरी घटना घटना के अनुसार उस वक्त चरवाहे मैदानों में रहकर रात को अपने झुंडों (भेड़ों) की रखवाली कर रहे थे।- (लूका 2:8)। इसका यह मतलब यह कि उस वक्त कड़ाके की ठंड नहीं थी। ‘डेली लाइफ इन द टाइम ऑफ जीसस’ नामक किताब में यह उल्लेख मिलता है कि ‘फसल के एक हफ्ते पहले’ यानी करीब मार्च के मध्य से लेकर नवंबर के मध्य तक भेड़ों के झुंड खुले मैदान में रहते थे। यही किताब में लिखा है कि ‘सर्दियों के दौरान वे (चरवाहें और भेड़े) अंदर ही रहते थे।ALSO READ: Christmas Day 2024: कैसे करें क्रिसमस सेलिब्रेशन की तैयारी?
कुछ धर्मशास्त्री मानते हैं कि उनका जन्म वसंत में हुआ था, क्योंकि इस बात का जिक्र है कि जब ईसा का जन्म हुआ था, उस समय गड़रिये मैदानों में अपने झुंडों की देखरेख कर रहे थे। अगर उस समय दिसंबर की सर्दियां होतीं, तो वे कहीं शरण लेकर बैठे होते। और अगर गड़रिये मैथुन काल के दौरान भेड़ों की देखभाल कर रहे होते तो वे उन भेड़ों को झुंड से अलग करने में मशगूल होते, जो समागम कर चुकी होतीं। ऐसा होता तो ये पतझड़ का समय होता।
25 दिसंबर को चुनने के पीछे का इतिहास क्या है?
इतिहासकारों के अनुसार रोमन काल से ही दिसंबर के आखिर में पैगन परंपरा के तौर पर जमकर पार्टी करने का चलन रहा है। यही चलन ईसाइयों ने भी अपनाया और इसे नाम दिया ‘क्रिसमस’। इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका के हवाले से कुछ लोग यह भी कहते हैं कि चर्च के नेतृत्व कर्ता लोगों ने यह तारीख शायद इसलिए चुनी ताकि यह उस तारीख से मेल खा सके, जब गैर-ईसाई रोमन लोग सर्दियों के अंत में ‘अजेय सूर्य का जन्मदिन मनाते’ थे।’
एक रिपोर्ट के मुताबिक शोधकर्ताओं के अनुसार रोमन कैथोलिक चर्च ने इस दिन को ‘बड़े दिन’ के रूप में चुना था। कहते हैं कि इसे विंटर सोलिस्टिस से जोड़ा गया, जो कि उत्तरी गोलार्द्ध में सबसे छोटा दिन होता है। उसके अगले दिन से दिन की लंबाई धीरे-धीरे बढ़ने लगती है। इस दिन रोमन संस्कृति के शनि के देवता का पर्व ‘सैटर्नालिया’ भी मनाते हैं। इसीलिए रोमनों ने यह दिन चुना। ऐसे में चर्च ने इस तारीख को ईसा मसीह के जन्मदिन के तौर पर सेलिब्रेट करने का निर्णय लिया। उस समय यूरोप में गैर ईसाई लोग इस दिन को सूर्य के जन्मदिन के रूप में मनाते थे। ऐसे में चर्च के भी चाहता था कि गैर ईसाईयों के सामने एक बड़ा त्योहार खड़ा किया जाए। क्योंकि सभी लोग इस दिन उत्सव मनाते थे तो उन्होंने इसी दिन को ईसा मसीह का जन्मदिन घोषित करके सेलिब्रेट करने का निर्णय लिया। एक अन्य मान्यता अनुसार यीशू मसीह ईस्टर के दिन अपनी मां के गर्भ में आए थे, इस तरह उसके 9 महीने बाद लोग उनका जन्मदिन मानाने लगे। गर्भ में आने के दिन को रोमन और कई लोगों ने 25 मार्च माना था। वहीं, ग्रीक कैलेंडर के मुताबिक इसे 6 अप्रैल माना जाता है। इसके अनुसार 25 दिसंबर और 6 जनवरी की तारीखें सामने आईं थीं।
हालांकि यह तय करना अभी बाकी है कि यीशु का जन्म सर्दियों में हुआ था या वसंत में? लेकिन कहते हैं कि सर्दियों में उन्होंने 30 वर्ष की उम्र में यूहन्ना (जॉन) से बाप्तिस्मा (दीक्षा) ली। बाइबल के अनुसार, ईस्वी 27 की शरद ऋतु में यीशु का बपतिस्मा हुआ (मत्ती 3: 13-17; मरकुस 1: 9–11; लूका 3: 21–22)। यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला तब तक लगभग छह महीने तक प्रचार करता रहा था; (मत्ती 3: 1)।
शरद ऋतु तीन महत्वपूर्ण त्योहारों का समय था: रोश हशनाह, या तुरहियां फूंकने का पर्व (लैव्यव्यवस्था 23:24; गिनती 29: 1); योम किप्पुर, प्रायश्चित का दिन (निर्गमन 30:10; लैव्यव्यवस्था 16); और तंबुओं का पर्व (निर्गमन 23:16; लैव्यव्यवस्था 23:34)। तीसरे त्योहार में सभी मनुष्यों को यरूशलेम में परमेश्वर के सामने आने की उम्मीद थी (निर्गमन 23: 14-17)। कहते हैं कि 27 दिसंबर की शरद ऋतु में, यीशु यरदन में बपतिस्मा लेने के लिए यूहन्ना के पास आए। (मत्ती 3: 13-15)।
नोट : समय के अनुसार ऋतुओं का चक्र बदलता रहा है। उदाहरणार्थ सभी जानते हैं कि 14 जनवरी को मकर संक्रांति रहती है। 2012 में 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई गई थी। वर्ष 2020 में भी मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई गई थे। मुगल बादशाह अकबर के काल में 10 जनवरी को और वीर छत्रपति सम्राट शिवाजी महाराज के शासनकाल में 11 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई गई थी। सन् 1600 में 10 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई गई थी। राजा हर्षवर्द्धन के समय में 24 दिसंबर को मकर संक्रांति मनाई गई थी।
एक समय ऐसा भी आएगा जबकि मकर संक्रांति फरवरी में भी मनाई जाएगी। ज्योतिष मान्यता के अनुसार सूर्य की गति प्रतिवर्ष 20 सेकंड बढ़ रही है। इस मान से देखा जाएगा तो करीब 1,000 साल पहले 31 दिसंबर को मकर संक्रांति मनाई गई थी और 5,000 वर्ष के बाद संभवत: मकर संक्रांति फरवरी की किसी तारीख को मनाई जाए। पिछले 1,000 वर्षों में सूर्य 2 हफ्ते आगे खिसक गया है इसीलिए 14 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जाने लगी थी। आने वाले समय में यानी सन् 2600 में मकर संक्रांति 23 जनवरी को मनाई जाएगी। इसी अनुमान से वर्ष 7015 में मकर संक्रांति 23 मार्च को मनाई जाने लगेगी। इसलिए यह माना जा सकता है कि आज से 2 हजार वर्ष पूर्व दिसंबर के माह में ही वसंत ऋतु रही हो।
डिस्क्लेमर : लेख में दी गई जानकारी विभिन्न स्रोत से प्राप्त, शोध, मान्यता और परंपरा पर आधारित जानकारी है इसकी पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। इसके लिए किसी विशेषज्ञ से जरूर सलाह लें।