ganga jal samvardhan abhiyan
Ganga jal samvardhan abhiyan in MP: सनातन हिंदू धर्म में गंगा नदी को बेहद पवित्र और मोक्षदायिनी माना गया है। गंगा का जल सभी नदियों की अपेक्षा बहुत शुद्ध है। गंगा करोड़ों लोगों की प्यास बुझाती है। भागीरथ के बेहद कड़े तप के बाद गंगा का अवतरण हुआ है। झेलम, गंगा, नर्मदा, गोदावरी, महानदी, कृष्ण और कावेरी ये 7 नदियां भारत की जीवनरेखा हैं। लेकिन वर्तमान समय में इन नदियों की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है।
इसी को ध्यान में रखकर केंद्र सरकार ने ‘नमामि गंगा’ का प्रोजेक्ट प्रारंभ किया और अब मध्यप्रदेश की मोहन यादव सरकार ने ‘गंगा जल संवर्धन अभियान’ प्रारंभ किया है।
मध्यप्रदेश में 5 जून पर्यावरण दिवस से 16 जून गंगा दशहरा तक ‘जल गंगा संवर्धन अभियान’ चलाया जा रहा है। इसके तहत प्रदेश में जनभागीदारी से 5 करोड़ 50 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य है। इसी के साथ आसपास के जल स्रोतों के संरक्षण और स्वच्छता के साथ-साथ उन स्थानों पर वृक्षारोपण को प्रोत्साहित किया जाएगा। 3 हजार 90 करोड़ की लागत से जल संरक्षण के 990 कार्य होना है। जल गंगा संवर्धन अभियान गंगा दशहरा के बाद भी जारी रहेगा।ALSO READ: Mp river name: मध्यप्रदेश में बहती हैं देश की सबसे ज्यादा नदियां, जानें कितनी?
मध्यप्रदेश सरकार की यह एक सराहनीय पहल है परंतु जल संवर्धन तभी संभव हो सकता है जबकि सभी के प्रयासों से मध्यप्रदेश की सभी नदियों को खनन, प्रदूषण और अवरोध से बचाया जा सके। इसी के साथ बिजली के अन्य सोर्स को तेजी से विकसित किया जाना अब बेहद जरूरी हो चला है। इस दिशा में जनभागीदारी के साथ पहल करने की जरूरत है। मध्यप्रदेश में करीब 207 नदियां हैं, जोकि अन्य राज्यों कि अपेक्षा 4 गुना ज्यादा है। केंद्र सरकार ने जिस तरह नमामि गंगे परियोजना चलाकर गंगा को अधिकतर जगहों से प्रदूषण मुक्त कर दिया है, उसी तरह मध्यप्रदेश की सभी नदियों के लिए यह कार्य किए जाने की जरूरत है, तभी ‘जल गंगा संवर्धन अभियान’ सफल होगा और तभी गंगा दशहरा और नर्मदा जयंती मनाया जाना भी सार्थक माना जाएगा।ALSO READ: Indian rivers: भारत में कितनी नदियां बहती हैं और कितनी संकट में हैं?
भारत में नदियों को देवी मानकर उनकी पूजा और आरती की जाती है। अधिकतर हिंदू तीर्थ नदियों के तट पर ही स्थित है। अधिकतर नदियों की जयंती मनाई जाती है। हम गंगा दशहरा या नर्मदा जयंती इसलिए मानते हैं ताकि इन नदियों की हमारे जीवन में उपयोगिता और महत्व को हम समझ सकें। जब गंगा धरती पर आई, तब यहां की बंजर धरती उपजाऊ हुई और हर क्षेत्र में हरियाली छा गई, तभी से यह गंगा दशहरा पर्व मनाने की शुरूआत हुई। गंगा दशहरा का पर्व गंगा नदी की उत्पत्ति से जुड़ा पर्व है। नदियां हैं तो जीवन है। वनों से नदियां और नदियों से वनों का गहरा जुड़ाव है।
नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिति में सुधार करने के लिए उनकी भूमि पर वन बनाने की जरूरत होगी। व्यापक स्तर पर पानी की गुणवत्ता की निगरानी के लिए रियल टाइम जल गुणवत्ता निगरानी केंद्र स्थापित किए जाने की जरूरत है। नमामि गंगा की तरह नदियों का सीवरेज उपचार अवसंरचना, रिवर-फ्रंट डेवलपमेंट, नदी-सतह की सफाई, जैव विविधता संरक्षण, वनीकरण, जन जागरण, औद्योगिक प्रवाह निगरानी पोस्ट और ग्राम जल संरक्षण पर ध्यान देने की जरूरत से सभी अवगत हैं।ALSO READ: Narmada nadi : नर्मदा नदी के विपरीत दिशा में बहने का कारण जानकर आप रह जाएंगे हैरान
इसी के साथ अब समय आ गया है कि नदी लिंक परियोजना की पुनर्समीक्षा की जाए क्योंकि नदी लिंक परियोजना वहां पर ज्यादा सफल है जो इलाके नदियों के कारण हर हाल बाढ़ ग्रस्त रहते हैं। बाढ़ग्रस्त क्षेत्र की नदियों को सूखे इलाके की नदियों से लिंक की जाने की योजना होना चाहिए। नर्मदा जैसी नदियों को लिंक करने से कहीं ऐसा न हो कि नर्मदा सूखने लगे क्योंकि पहले ही नर्मदा का जल नहरों के माध्यम से सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता रहा है। इसलिए जरूरी है कि मुख्य नदियों की प्राकृतिक रूप से निर्मित सहायक नदियों के प्रवाह को निर्बाध किया जाए तभी गंगा जल संवर्धन का सपना बहुत जल्द ही साकार होगा।
इस पर भी तेजी से ध्यान दिए जाने की जरूरत है कि वर्षा जल को जितना अधिक से अधिक संरक्षित कर सकें रोकना होगा। इसके लिए मध्यप्रदेश सरकार की रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को बढ़ावा देने की पहल भी प्रशंसनीय रही है। इसी के साथ अब जरूरत इस बात की भी है कि पहाड़ों पर बारिश के पानी को बहने से रोकने की ज्यादा जरूरत है। इसके लिए देवास जिले में जो काम हुआ है वह सराहनीय है। पहाड़ों पर वृक्षारोपण अधिक संख्या में होना चाहिए। इससे भूमि का जल स्तर और अधिक तेजी से बढ़ेगा।ALSO READ: गंगा से भी ज्यादा पवित्र क्यों हैं नर्मदा नदी?
गंगा ही नहीं सभी नदियां बहुत ही बड़े भागीरथी प्रयासों से धरती पर अवतरित हुई हैं। भले ही कुछ नदियां प्रकृतिक क्रम विकास में प्रकट हुई हों लेकिन उनके प्रकटिकरण में भी लाखों साल लगे हैं। इन नदियों के कारण ही भारत की पावन धरती पर वनों और अनाजों की उत्पत्ति हुई है। आज जरूरत है कि हम वनों के साथ नदियों के जल को शुद्ध और संवरक्षित करने के लिए हम सभी एक साथ भागीरथी प्रयास करने में जुट जाएं तभी यह ‘जल गंगा संवर्धन अभियान’ सफल होगा।