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जानिए मुंबई में ‘लालबाग चा राजा’ के 90 सालों का इतिहास

Lalbaug Cha Raja

Lalbaug Cha Raja: जिस तरह से कोई भी त्योहार, कोई भी पूजा गणेश जी के बिना नहीं होती है। ठीक उसी तरह से मुंबई की गणेश चतुर्थी की चर्चा बिना ‘लालबाग चा राजा’ के पूरी हो ही नहीं सकती है। ‘लालबाग चा राजा’ मुंबई के सबसे चर्चित गणेशोत्सव पंडालों में से एक है जिनके दरबार में आम से लेकर खास तक हर कोई हाजिरी जरूर लगाता है। लगभग 9 दशकों से मुंबई में ‘लालबाग चा राजा’ का दरबार सजता आ रहा है।

इस साल 91वें वर्ष में ‘लालबाग चा राजा’ की पूजा होगी। क्या आप जानते हैं ‘लालबाग चा राजा’ की पूजा क्यों शुरू हुई? जब यह पूजा शुरू हुई उस समय हमारे देश के हालात कैसे थे?ALSO READ: रणथंभौर के किले में स्थित चमत्कारी त्रिनेत्र गणेश मंदिर, जहां भक्त बप्पा को चिट्ठी लिखकर लगाते हैं अपनी अर्जी

कब शुरू हुई थी ‘लालबाग चा राजा’ की पूजा?
‘लालबाग चा राजा’ की पूजा लगभग 90 सालों पहले 1932 के आसपास शुरू हुई थी। यह वह दौर था जब भारत में आजादी की आग धधक रही थी। उस समय इस इलाके को ‘मिलों का गांव’ कहा जाता था क्योंकि यहां लगभग 130 कपास की मिलें थी। 1932 में किसी कारणवश ये मिलें बंद हो गयी जिससे यहां रहने वाले व्यापारी और मछुआरे समुदाय के लोग काफी ज्यादा प्रभावित हुए। कहा जाता है कि मछुआरों ने उस समय गणपति बाप्पा से मन्नत मांगी कि अगर उनका रोजगार बचा रहा तो वे गणपति उत्सव मनाएंगे।

स्थानीय लोगों के अनुसार सौभाग्यवश मछुआरों को अपना नया बाजार बनाने के लिए जमीन मिल गयी और तभी से यहां ‘लालबाग चा राजा’ की पूजा शुरू हुई। 1934 में लालबाग चा राजा गणेशोत्सव मंडल की स्थापना की गयी थी। उसके बाद से ही स्थानीय निवासी ‘लालबाग चा राजा’ को इस क्षेत्र का संरक्षक देवता मानते हैं।

कहा जाता है कि भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा और सम्मान को दर्शाने के लिए मछुआरों ने उस जमीन का एक हिस्सा वार्षिक सार्वजनिक गणेश मंडल, वर्तमान में लालबाग, को सौंप दी थी। मूर्ति और प्रसाद से जुड़ी परंपराएं ‘लालबाग चा राजा’ की पूजा के साथ-साथ इस मूर्ति और यहां मिलने वाले प्रसाद से भी जुड़ी परंपराएं भी काफी खास हैं।

कौन बनाता है मूर्ति :
पिछले 90 सालों से ‘लालबाग चा राजा’ की मूर्ति बनाने का काम एक ही परिवार, मधुसूदन कांबली का परिवार, पीढ़ी-दर-पीढ़ी से करता आ रहा है। सिर्फ मूर्ति ही नहीं, कहा जाता है कि इस मंडल में भगवान को चढ़ाई जाने वाले मोदक और लड्डू भी श्री भवानी केटर्स ही हमेशा से बनाते आ रहे हैं। ‘लालबाग चा राजा’ के प्रिय बूंदी के लड्डू बनाने का काम यहीं केटर्स करते हैं, जिन्हें बाप्पा के भक्तों में प्रसाद के तौर पर वितरित किया जाता है।

क्या है खास बात:
‘लालबाग चा राजा’ की सबसे बड़ी खासियत होती है कि यहां भगवान गणपति को एक राजा के तौर पर सिंहासन पर विराजमान रूप में ही दिखाया जाता है। सिर्फ इतना ही नहीं भगवान की मूर्ति यहां कई फीट ऊंची होती है, जो अपने आप में बेहद खास और भव्य होता है।

इनके दरबार में सितारें भी उतर आते हैं जमीन पर :
मुंबई में लोअर परेल के पास होती है ‘लालबाग चा राजा’ की पूजा। हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु गणेशोत्सव के 10 दिनों के दौरान इनके दर्शन करने पहुंचते हैं। मुंबई में सबसे ज्यादा लोकप्रिय गणेश पूजा मंडलों में ‘लालबाग चा राजा’ का नाम शामिल है। दर्शनार्थी यहां पूरी रात लाइन में लगकर भगवान गणपति के दर्शन करते हैं।
‘लालबाग चा राजा’ के दरबार में हाजिरी लगाने के लिए आम लोगों के अलावा खास लोग भी पहुंचते हैं, जिसमें बड़ी संख्या में फिल्मी सितारें और राजनीति से जुड़ी हस्तियां शामिल होती हैं। एक तरह से कहा जा सकता है कि अगर आप गणेश चतुर्थी के दौरान फिल्मी सितारों को करीब से देखना चाहते हैं तो ‘लालबाग चा राजा’ के दरबार में जरूर जाएं। वहां आपको हर दिन कोई न कोई फिल्मस्टार जरूर दिख जाएगा।

लाखों की भीड़ उमड़ती है ‘लालबाग चा राजा’ के दर्शन करने :
सिर्फ मुंबईकर ही नहीं बल्कि आसपास के दूसरे शहरों और देश व विदेशों से भी लोग पहुंचते हैं। कई बार भक्तों की लाइन इतनी लंबी हो जाती है कि उन्हें गणपति बाप्पा के दर्शन करने के लिए 40 घंटों तक का समय लग जाता है।
 ‘लालबाग चा राजा’ के दरबार तक पहुंचने के लिए मूल रूप से दो लाइनें होती हैं – नवसाची लाइन और मुख दर्शनाची लाइन। नवसाची लाइन में खड़े होने वाले दर्शनार्थी भगवान के पैरों को छु कर उनका आर्शीवाद ले सकते हैं। वहीं मुख दर्शनाची लाइन में भक्त थोड़ी दूरी से भगवान के दर्शन करके आगे बढ़ जाते हैं। 
 
भव्य होता है विसर्जन
‘लालबाग चा राजा’ का दरबार जितना शानदार सजाया जाता है, उनका विसर्जन भी उतना ही भव्य होता है। गणेशोत्सव के 10वें दिन ‘लालबाग चा राजा’ का विसर्जन जुलूस निकलता है। खास बात है कि मुंबई में सबसे बड़ा विसर्जन जुलूस ‘लालबाग चा राजा’ का ही निकलता है। गणेश उत्सव के अंतिम दिन सुबह के करीब 10 बजे विसर्जन का यह जुलूस निकलता है जो अगले दिन अहले सुबह समुद्र के किनारे पहुंचने के बाद खत्म होता है। यानी ‘लालबाग चा राजा’ के विसर्जन में 24 घंटे से भी अधिक का समय लग जाता है।