Dev Uthani Ekadashi 2003: देव उठनी एकादशी के व्रत को लेकर भ्रम है कि यह 23 नवंबर को या कि 24 नवंबर 2023 को रखा जाएगा। यह भतभेद दरअसल स्मार्त और वैष्णव संप्रदाय के बीच है। हालांकि यदि तिथि के अनुसार देखें तो यह 23 नवंबर को रहेगी। इस दिन तुलसी और शालिग्राम जी के विवाह का खास महत्व रहता है और इस दिन विशेष उपाय करने से लाभ भी होता है।
एकादशी तिथि प्रारम्भ- 22 नवम्बर 2023 बुधवार को सुबह 11:03 बजे से।
एकादशी तिथि समाप्त- 23 नवम्बर 2023 को रात्रि 09:01 बजे समाप्त।
देव उठनी एकादशी का व्रत 23 नवंबर 2023 गुरुवार के दिन रखा जाएगा।
24 नवम्बर को पारण (व्रत तोड़ने का) समय- सुबह 06:51 से 08:57 के बीच।
तुलसी और शालिग्राजी के विवाह का महत्व क्या है?
कार्तिक मास की एकादशी यानी देव उठनी एकादशी के दिन से मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं।
इसीलिए भी तुलसी माता के साथ शालिग्राम जी के विवाह करने की परंपरा भी है।
शालिग्राम के साथ तुलसी का आध्यात्मिक विवाह देव उठनी एकादशी को होता है।
इस दिन तुलसी की पूजा का महत्व है। तुलसी दल अकाल मृत्यु से बचाता है।
शालीग्राम और तुलसी की पूजा से पितृदोष का शमन होता है।
तुलसी को विष्णु प्रिया भी कहते हैं इसलिए देवता जब जागते हैं, तो सबसे पहली प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं।
तुलसी विवाह का सीधा अर्थ है, तुलसी के माध्यम से भगवान का आह्वान करना।
जिन दंपत्तियों के कन्या नहीं होती, वे जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य प्राप्त करके हैं।
देव उठनी एकादशी के उपाय:-
1. पितृदोष से पीड़ित लोगों को इस दिन विधिवत व्रत करना चाहिए। पितरों के लिए यह उपवास करने से अधिक लाभ मिलता है जिससे उनके पितृ नरक के दुखों से छुटकारा पा सकते हैं।
2. इस दिन भगवान विष्णु या अपने इष्ट-देव की उपासना करना चाहिए। इस दिन “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः “मंत्र का जाप करने से लाभ मिलता है।
3. शालीग्राम के साथ तुलसी का आध्यात्मिक विवाह देव उठनी एकादशी को होता है। इस दिन तुलसी की पूजा का महत्व है। तुलसी दल अकाल मृत्यु से बचाता है। शालीग्राम और तुलसी की पूजा से पितृदोष का शमन होता है।
4. इस दिन देवउठनी एकादशी की पौराणिक कथा का श्रावण या वाचन करना चाहिए। कथा सुनने या कहने से पुण्य की प्राप्ति भी होती है।
एकादशी का व्रत : कुछ खास मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए इस दिन कुछ चीजों के त्याग का व्रत लें। इस व्रत में दूध, शकर, दही, तेल, बैंगन, पत्तेदार सब्जियां, नमकीन या मसालेदार भोजन, मिठाई, सुपारी, मांस और मदिरा का सेवन नहीं किया जाता। कार्तिक में प्याज, लहसुन और उड़द की दाल आदि का त्याग कर दिया जाता है। पारण यानी व्रत खोलने के समय भगवान विष्णु का पूजन करने के बाद फलाहार ग्रहण करें।