Shri Krishna Mangal Aarti: प्रत्येक देवी और देवता की मंगल आरती होती है। भगगाव श्री कृष्ण की भी मंगल आरती गायी जाती है। मंगल या मंगाला आरती को भोर की आरती कहते हैं। इस आरती से निद्रा में सोए हुए देवता को जगाया जाता है। मंगला आरती किसी भी मंदिर की पहली आरती है, जो कि ब्रह्म मुहूर्त में की जाती है और इस आरती का खास महत्व होता है।
भगवान श्रीकृष्ण की मंगल आरती | Mangal Aarti of Lord Shri Krishna
[1]
(माई) मंगल आरति गुपालकी।
नित प्रति मंगल होत निरख मुख
चितवन नयन विसालकी।।
मंगल रूप स्याम सुंदरको
मंगल भृकुटि सुभाल की।।
चत्रभुज दास सदा मंगल निधि
बानिक गिरिधरलालकी।।
[2]
मंगल आरति कीजै भोर।
मंगल जन्म-करम गुन मंगल,
मंगल जसुदा-माखन-चोर
मंगल बेनु, मुकुट बर मंगल,
मंगल रूप रमै मन मोर।।
जन भगवान जगतमें मंगल,
मंगल राधा जुगल किसोर।।
[3]
मंगल आरति कर मन मोर
भरम-निसा बीती, भयो भोर।।
मंगल बाजत झालर ताल।
मंगल रूप उठे नंदलाल।।
मंगल धूप-दीप कर जोर।
मंगल सब बिधि गावत होर।।
मंगल उदयो मंगल रास।
मंगल बल परमानंद दास।।
[4]
मंगल माधौ नाम उचार।
मंगल बदन-कमल, कर मंगल,
मंगल जनकी सदा संभार।।
देखत मंगल, पूजत मंगल,
गावत मंगल चरित उदार।
मंगल श्रवन, कथा-रस मंगल,
मंगल-पनु वसुदेव-कुमार।।
गोकुल मंगल, मधुवन मंगल,
मंगल-रुचि वृन्दाबनचंद।
मंगल करत गोवर्धनधारी,
मंगल-वेष जसोदानंद।।
मंगल धेनु, रेनु-भू मंगल,
मंगल मधुर बजावत बेन।
मंगल गोपबधू-परिरंभन,
मंगल कालिंदी-पय-फेन।।
मंगल चरन-कमल मुनि-बंदित,
मंगल कीरति जगत-निवास।
अनुदिन मंगल ध्यान धरत मुनि,
मंगल-मति परमानंददास।।
[5]
मंगलरूप जसोदानंद।
मंगल मुकुट, श्रवनमें कुंडल,
मंगल तिलक बिराजत चंद।।
मंगल भूषन सब अंग सोहत,
मंगल-मूरति आनंदकंद
मंगल लकुट कांख में चांपै,
मंगल मुरलि बजावत मंद।।
मंगल चाल मनोहर, मंगल
दरसन होत मिटै दु:ख-द्वंद।
मंगल ब्रजपति नाम सबन को,
मंगल जस गावत श्रुति-छंद।।
[6]
सब बिधि मंगल नंद को लाल।
कमल-नयन! बलि जाय जसोदा,
न्हात खिजो जिन मेरे बाल।।
मंगल गावत मंगल मूरति
मंगल लीला ललित गुपाल।
मंगल ब्रजबासिनके घर-घर,
नाचत-गावत दे कर ताल।।
मंगल बृन्दावन के रंजन,
मंगल मुरली शब्द रसाल।
मंगल जस गावै परमानंद,
सखा मंडली मध्य गुपाल।।