Makar Sankranti 2025: सूर्य के मकर राशि में जाने पर मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। मकर संक्रांति का हिंदू धर्म में बहुत महत्व माना गया है। पिछले कुछ वर्षों से मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी को भी आने लगा है। इसीलिए लोगों में हर साल यह भ्रम बना रहता है कि इस बार मकर संक्रांति 14 जनवरी को रहेगी या कि 15 जनवरी को। वर्ष 2023 में मकर संक्रांति 15 जनवरी मनाई गई थी क्योंकि 14 जनवरी की रात्रि में मकर राशि में सूर्य ने प्रवेश किया था। इस मान से अगले दिन मकर संक्रांति मनाई गई। हालांकि इस बार वर्ष 2025 में मकर संक्रांति का पर्व 14 जनवरी को ही रखा जाएगा। सूर्य 14 जनवरी मंगलवार को सुबह 09:03 बजे मकर राशि में प्रवेश करेगा।
मकर संक्रांति का पुण्य काल- सुबह 09:03 से शाम 05:46 तक।
मकर संक्रांति का महा पुण्य काल- सुबह 09:03 से सुबह 10:48 तक।
उल्लेखनीय है कि 2012 में 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई गई थी। वर्ष 2020 में भी मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई गई थे। 1600 में 10 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई गई थी। राजा हर्षवर्द्धन के समय में 24 दिसंबर को मकर संक्रांति मनाई गई थी। मुगल बादशाह अकबर के काल में 10 जनवरी को और वीर छत्रपति सम्राट शिवाजी महाराज के शासनकाल में 11 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई गई थी। एक समय ऐसा भी आएगा जबकि मकर संक्रांति फरवरी में भी मनाई जाएगी। ज्योतिष मान्यता के अनुसार सूर्य की गति प्रतिवर्ष 20 सेकंड बढ़ रही है। इस मान से देखा जाएगा तो करीब 1,000 साल पहले 31 दिसंबर को मकर संक्रांति मनाई गई थी और 5,000 वर्ष के बाद संभवत: मकर संक्रांति फरवरी की किसी तारीख को मनाई जाए। पिछले 1,000 वर्षों में सूर्य 2 हफ्ते आगे खिसक गया है इसीलिए 14 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जाने लगी थी। आने वाले समय में यानी सन् 2600 में मकर संक्रांति 23 जनवरी को मनाई जाएगी। इसी अनुमान से वर्ष 7015 में मकर संक्रांति 23 मार्च को मनाई जाने लगेगी।
सूर्य को अर्घ्य देने की विधि- Surya dev ko arghya kaise de:-
– सबसे पहले स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।
– एक सफेद या पीला वस्त्र धारण करें।
– तांबे के लोटे में जलभर कर उसमें मिश्री, कुंकुम, अक्षत, तिल तथा लाल रंग का फूल डालें।
– तत्पश्चात उदित होते सूर्य के समक्ष कुश का आसन लगाएं।
– आसन पर खड़े होकर हाथों से तांबे के लोटे को पकड़ कर जल इस तरह चढ़ाएं कि सूर्य चढ़ाती जलधारा से दिखाई दें।
– हमेशा सूर्य को जल का अर्घ्य धीरे-धीरे चढ़ाएं ताकि जलधारा आपके आसन पर आकर गिरे।
अर्घ्य देते समय निम्न मंत्र का पाठ करें-
‘ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते।
अनुकंपये माम भक्त्या गृहणार्घ्यं दिवाकर:।।’ (11 बार)
– तत्पश्चात सीधे हाथ की अंजूरी में जल लेकर अपने चारों ओर छिड़कें।
– अपने स्थान पर ही तीन बार घुम कर परिक्रमा करें।
– अब आसन उठाकर उस स्थान को नमन करें।
– इस अर्घ्यदान से भगवान सूर्य प्रसन्न होकर आयु, आरोग्य, धन, धान्य, पुत्र, मित्र, तेज, वीर्य, यश, कान्ति, विद्या, वैभव और सौभाग्य को प्रदान करते हैं तथा सूर्य लोक की प्राप्ति होती है।