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महाकाल के आंगन में क्यों जलती है सबसे पहले होलिका, जानिए क्यों नहीं होती मुहूर्त की जरूरत

 

 
Mahakaleshwar Temple Holi: होली पर्व का हिंदू धर्म में विशेष स्थान है। रंग और हर्ष और उल्लास के त्यौहार का पौराणिक महत्व भी बहुत अधिक है। क्या त्यौहार हमारी संस्कृति और धार्मिक आस्था का प्रतीक है। फागुन मास की पूर्णिमा पर होलिका दहन का आयोजन होता है और इसके अगले दिन पूरे देश में रंगों के महोत्सव दुलंदी पर्व को हर्षोल्लाह से मनाया जाता है। पूरे देश में हर राज्य में यह त्यौहार अपने अंदाज में मनाया जाता है। भारत में कई शहरों की होली विश्व प्रसिद्ध है जिसे देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं देश में सबसे पहले होलिका दहन का आयोजन उज्जैन के महाकाल मंदिर में होता है और इसके बाद बाबा महाकाल अपने भक्तों के साथ होली खेलते हैं। आइए इस विषय में आपको विस्तार से बताते हैं।
 

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महाकाल मंदिर में क्यों होलिका दहन  के लिए नहीं देखा जाता मुहूर्त 
उज्जैन के महाकाल को 12 ज्योतिर्लिंगों में विशेष स्थान प्राप्त है। मानता है कि महाकाल के आंगन में होली पर प्रबंध पूजा करने से संकटों का नाश होता है। विशेष बात यह है कि महाकाल मंदिर में शाम की आरती के बाद देश में सबसे पहले होलिका दहन होता है। खास बात यह भी है कि होलिका दहन के लिए महाकाल मंदिर में किसी विशेष मुहूर्त को देखने की जरूरत नहीं होती। इसके पीछे यह मान्यता है कि भगवान महाकाल इस पूरी सृष्टि के राजा हैं और इसीलिए यहां होली दहन सबसे पहले किया जाता है।
 
राजा महाकाल खेलते हैं प्रजा के साथ होली
इसके बाद राजा महाकाल के दरबार में भगवान भोलेनाथ अपने भक्तों के साथ होली खेलते हैं । भक्त अपने आराध्य को रंग और गुलाल अर्पित करते हैं । यह नजारा देखने में बहुत अद्भुत होता है और इस दिन देश भर से भक्त महाकाल पहुंचते हैं । मान्यता है कि महाकाल के दरबार में रंग खेलने से जीवन में भी रंगों का संचार होता है। भक्तों का विश्वास है कि महाकाल के आंगन में होली के त्योहार पर विशेष तरह की पूजा-अर्चना करने से दुख, दरिद्रता और संकट का नाश होता है।