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शारदीय नवरात्रि की नवमी की देवी सिद्धिदात्री की पूजा और कथा

Maa Siddhidatri Puja Vidhi In Hindi: चैत्र या शारदीय नवरात्रि यानी नवदुर्गा में नौवें दिन नवमी की देवी मां सिद्धिदात्री का पूजन किया जाता है। इसके बाद उनकी पौराणिक कथा या कहानी पढ़ी या सुनी जाती है। आओ जानते हैं माता सिद्धिदात्री की पावन कथा, पूजा, आरती, भोग, मंत्र सहित संपूर्ण जानकारी।

शारदीय नवरात्रि 11 अक्टूबर 2024 नवमी पूजा के शुभ मुहूर्त: 

संधि पूजा: दोपहर 11:42 से दोपहर 12:30 के बीच। महानवमी भी इसी दिन।

सुबह की पूजा: प्रात: 04:41 से 06:20 के बीच। 

दोपहर की पूजा अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 11:44 से 12:31 के बीच।

शाम की पूजा: शाम 05:55 से 07:10 के बीच।

रात्रि की पूजा: अमृत काल में 11:05 से 12:40 के बीच।

 

सिद्धिदात्री का स्वरूप: मां दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। मां सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। ये कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं। इनकी दाहिनी तरफ के नीचे वाले हाथ में कमलपुष्प है। इन्हें कमलारानी भी कहते हैं। मां सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को ये सभी सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ हैं। देवीपुराण के अनुसार भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया था। इनकी अनुकम्पा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वे लोक में ‘अर्द्धनारीश्वर’ नाम से प्रसिद्ध हुए।

 

मां सिद्धिदात्री की कथा कहानी: पौराणिक मान्यताओं अनुसार एक बार पूरे ब्रह्मांड में अंधकार छा गया था। उस अंधकार में एक छोटी सी किरण प्रकट हुई। धीरे-धीरे यह किरण बड़ी होती गई और फिर इसने एक दिव्य नारी का रूप धारण कर लिया। मां सिद्धिदात्री ने प्रकट होकर त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु, और महेश को जन्म दिया। इन्हीं देवी मां की शिवजी ने आराधना की। देवी ने उन्हें सिद्धियां प्रदान की। इसी कारण देवी मां भगवती का नौवां स्वरूप मां सिद्धिदात्री कहलाया। सिद्धिदात्री देवी की ही कृपा से शिवजी का आधा शरीर देवी का हुआ जिसके कारण उनका एक नाम अर्धनारिश्वर पड़ा।

 

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार जब सभी देवी देवता महिषासुर के अत्याचार से परेशान हो गए थे तब सभी देवताओं ने त्रिदेवों की शरण ली और फिर तीनों देवों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) ने अपने तेज से मां सिद्धिदात्री को जन्म दिया था। इसके बाद सभी देवताओं ने इन्हें अपने शस्त्र प्रदान किए और माता ने महिषासुर से युद्धकर उसका अंत कर दिया।

 

सिद्धिदात्री की पूजा विधि:-

– नवरात्रि के आखिरी दिन घी का दीपक जलाने के साथ-साथ मां सिद्धिदात्री को कमल का फूल अर्पित करना शुभ माना जाता है।

– इसके अलावा जो भी फल या भोजन मां को अर्पित करें वो लाल वस्त्र में लपेट कर दें।

– निर्धनों को भोजन कराने के बाद ही खुद खाएं।

– पूजन-अर्चन के पश्चात हवन, कुमारी पूजन, अर्चन, भोजन, ब्राह्मण भोजन करवाकर पूर्ण होता है।

 

देवी सिद्धिदात्री के मंत्र-

ॐ सिद्धिदात्र्यै नम:।

या देवी सर्वभू‍तेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

सिद्धिदात्री माता की आरती: 

जय सिद्धिदात्री तू सिद्धि की दाता

तू भक्तों की रक्षक तू दासों की माता,

तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि

तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि

कठिन काम सिद्ध कराती हो तुम

हाथ सेवक के सर धरती हो तुम,

तेरी पूजा में न कोई विधि है

तू जगदंबे दाती तू सर्वसिद्धि है

रविवार को तेरा सुमरिन करे जो

तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो,

तू सब काज उसके कराती हो पूरे

कभी काम उस के रहे न अधूरे

तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया

रखे जिसके सर पैर मैया अपनी छाया,

सर्व सिद्धि दाती वो है भाग्यशाली

जो है तेरे दर का ही अम्बे सवाली

हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा

महानंदा मंदिर में है वास तेरा,

मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता

वंदना है सवाली तू जिसकी दाता..।