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श्री धन्वंतरि चालीसा

श्री धन्वंतरी चालीसा | dhanvantari chalisa

 

।श्री गणेशाय नमः।

 ॥ दोहा ॥

करूं वंदना गुरू चरण रज, ह्रदय राखी श्री राम।

मातृ पितृ चरण नमन करूं, प्रभु कीर्ति करूँ बखान 

तव कीर्ति आदि अनंत है , विष्णुअवतार भिषक महान।

हृदय में आकर विराजिए, जय धन्वंतरि भगवान ॥ 

 

॥  चौपाई ॥ 

जय धनवंतरि जय रोगारी। सुनलो प्रभु तुम अरज हमारी ॥

तुम्हारी महिमा सब जन गावें। सकल साधुजन हिय हरषावे॥

शाश्वत है आयुर्वेद विज्ञाना। तुम्हरी कृपा से सब जग जाना ॥

कथा अनोखी सुनी प्रकाशा। वेदों में ज्यूँ लिखी ऋषि व्यासा ॥

कुपित भयऊ तब ऋषि दुर्वासा। दीन्हा सब देवन को श्रापा ॥

श्री हीन भये सब तबहि। दर दर भटके हुए दरिद्र हि ॥

सकल मिलत गए ब्रह्मा लोका। ब्रह्म विलोकत भये हुँ अशोका ॥

परम पिता ने युक्ति विचारी। सकल समीप गए त्रिपुरारी ॥ 

उमापति संग सकल पधारे। रमा पति के चरण पखारे ॥

आपकी माया आप ही जाने। सकल बद्धकर खड़े पयाने ॥

इक उपाय है आप हि बोले। सकल औषध सिंधु में घोंले ॥

क्षीर सिंधु में औषध डारी। तनिक हंसे प्रभु लीला धारी ॥

मंदराचल की मथानी बनाई। दानवो से अगुवाई कराई ॥

देव जनो को पीछे लगाया। तल पृष्ठ को स्वयं हाथ लगाया ॥

मंथन हुआ भयंकर भारी। तब जन्मे प्रभु लीलाधारी ॥

अंश अवतार तब आप ही लीन्हा। धनवंतरि तेहि नामहि दीन्हा ॥

सौम्य चतुर्भुज रूप बनाया। स्तवन सब देवों ने गाया ॥

अमृत कलश लिए एक भुजा। आयुर्वेद औषध कर दूजा ॥

जन्म कथा है बड़ी निराली। सिंधु में उपजे घृत ज्यों मथानी ॥

सकल देवन को दीन्ही कान्ति। अमर वैभव से मिटी अशांति ॥

कल्पवृक्ष के आप है सहोदर। जीव जंतु के आप है सहचर ॥

तुम्हरी कृपा से आरोग्य पावा। सुदृढ़ वपु अरु ज्ञान बढ़ावा ॥

देव भिषक अश्विनी कुमारा। स्तुति करत सब भिषक परिवारा ॥ 

धर्म अर्थ काम अरु मोक्षा। आरोग्य है सर्वोत्तम शिक्षा ॥

तुम्हरी कृपा से धन्व राजा। बना तपस्वी नर भू राजा ॥

तनय बन धन्व घर आये। अब्ज रूप धनवंतरि कहलाये ॥

सकल ज्ञान कौशिक ऋषि पाये। कौशिक पौत्र सुश्रुत कहलाये ॥

आठ अंग में किया विभाजन। विविध रूप में गावें सज्जन ॥

अथर्व वेद से विग्रह कीन्हा। आयुर्वेद नाम तेहि दीन्हा ॥

काय ,बाल, ग्रह, उर्ध्वांग चिकित्सा। शल्य, जरा, दृष्ट्र, वाजी सा ॥

माधव निदान, चरक चिकित्सा। कश्यप बाल , शल्य सुश्रुता ॥

जय अष्टांग जय चरक संहिता। जय माधव जय सुश्रुत संहिता ॥

आप है सब रोगों के शत्रु। उदर नेत्र मष्तिक अरु जत्रु ॥

सकल औषध में है व्यापी। भिषक मित्र आतुर के साथी ॥

विश्वामित्र ब्रह्म ऋषि ज्ञान। सकल औषध ज्ञान बखानि ॥

भारद्वाज ऋषि ने भी गाया। सकल ज्ञान शिष्यों को सुनाया ॥

काय चिकित्सा बनी एक शाखा। जग में फहरी शल्य पताका ॥

कौशिक कुल में जन्मा दासा। भिषकवर नाम वेद प्रकाशा ॥

धन्वंतरि का लिखा चालीसा। नित्य गावे होवे वाजी सा ॥

जो कोई इसको नित्य ध्यावे। बल वैभव सम्पन्न तन पावें ॥ 

 

॥ दोहा ॥ 

रोग शोक सन्ताप हरण, अमृत कलश लिए हाथ।

जरा व्याधि मद लोभ मोह, हरण करो भिषक नाथ ॥ 

 

॥ इति धन्वंतरि चालीसा सम्पूर्ण ॥