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श्री मृत्युंजय स्तोत्र संस्कृत में हिन्दी अर्थ सहित | Shri mrityunjaya stotram in sanskrit and hindiin sanskrit and hindi

Sri maha mrityunjaya stotram: श्री मृत्युंजय स्तोत्र की रचना ऋषि मार्कंडेय ने की है। प्राचीन पुराण पद्मपुराण के अंतर्गत उत्तरखण्ड में यह पाठ पढ़ने को मिलता है। महामृत्युंजय स्तोत्र का पाठ करने से चमत्कारिक लाभ होता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से मृत्यु का भय खत्म हो जाता है, व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा और साहस का संचार होता है। वेबदुनिया ने  इस प्राचीन श्रीमृत्युंजयस्तोत्रम् को आपके लिए यहां विशेष रूप से प्रस्तुत किया है। यह एकदम सटीक और शास्त्रोक्त है। इसका पाठ करने से शिवजी की कृपा बनी रहती है। सोमवार, चतुर्दशी या श्रावण मास में इसका पाठ जरूर करना चाहिए।

 

श्री मृत्युंजय स्तोत्र | Shri Mrityunjaya Stotram:

 

रत्नसानुशरासनं रजताद्रिश्रृंङ्गनिकेतनं

शि‍ञ्जिनीकृतपन्नगेश्वरमच्युतानलसायकम्।

क्षिप्रदग्धपुरत्रयं त्रिदशालयैरभिवन्दितं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:।।1।।

 

पञ्चपादपपुष्पगन्धिपदाम्बुजद्वयशोभितं

भाललोचनजातपावकदग्धमन्मथविग्रहम्।

भस्मदिग्धकलेवरं भवनाशिनं भवमव्ययं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम: ।।2।।

 

कैलास के शिखर पर जिनका निवासगृह है, जिन्होंने मेरुगिरि का धनुष, नागराज वासुकि की प्रत्यंचा और भगवान् विष्णु को अग्निमय बाण बनाकर तत्काल ही दैत्यों के तीनों परों को दग्ध कर डाला था, सम्पूर्ण देवता जिनके चरणों की वन्दना करते हैं, उन भगवान् चन्द्रशेखर की मैं शरण लेता हूं। यमराज मेरा क्या करेगा? ।।1।।

 

मन्दार, पारिजात, संतान, कल्पवृक्ष और हरिचन्दन- इन पांच दिव्य वृक्षों के पुष्पों से सुगन्धित युगल चरण-कमल जिनकी शोभा बढ़ाते हैं, जिन्होंने अपने ललाटवर्ती नेत्र से प्रकट हुई आग की ज्वाला में कामदेव के शरीर को भस्म कर डाला था। जिनका श्रीविग्रह सदा भस्म से विभूषित रहता है, जो भव सबकी उत्पत्ति के कारण होते हुए भी भव संसार के नाशक हैं तथा जिनका कभी विनाश नहीं होता, उन भगवान चन्द्रशेखर की मैं शरण लेता हूं। यमराज मेरा क्या करेगा?।।2।।

 

मत्तवारणमुख्यचर्मकृतोत्तरीयमनोहरं

पंकजनासनपद्मलोचनपूजिताङ्गघ्रिसरोरुहम्।

देवसिद्धतरंगिणीकरसिक्तशीतजटाधरं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:।।3।।

 

कुण्डलीकृतकुण्डलीश्वरकुण्डलं वृषवाहनं

नारदादिमुनीश्वरस्तुतवैभवं भुवनेश्वरम्।

अन्धकान्तकमाश्रितामरपादपं शमनान्तकं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:।।4।।

 

यक्षराजसखं भगक्षिहरं भुजंगविभूषणं

शैलराजसुतापरिष्कृतचारुवामकलेवरम्।

 

जो मतवाले गजराज के मुख्य चर्म की चादर ओढ़े परम मनोहर जान पड़ते हैं, ब्रह्मा और विष्णु भी जिनके चरण कमलों की पूजा करते हैं तथा जो देवताओं और सिद्धों की नदी गंगा की तरंगों से भीगी हुई शीतल जटा धारण करते हैं, उन भगवान् चन्द्रशेखर की मैं शरण लेता हूं। यमराज मेरा क्या करेगा?।।3।।

 

गेडुल मारे हुए सर्पराज जिनके कानों में कुण्डल का काम देते हैं, जो वृषभ पर सवारी करते हैं, नारद आदि मुनीश्वर जिनके वैभव की स्तुति करते हैं, जो समस्त भुवनों के स्वामी, अन्धकासुर का नाश करने वाले, आश्रितजनों के लिए कल्पवृक्ष के समान और यमराज को भी शान्त करने वाले हैं, उन भगवान चन्द्रशेखर की मैं शरण लेता हूं। यमराज मेरा क्या करेगा?।।4।।

 

जो यक्षराज कुबेर के सखा, भग देवता की आंख फोड़ने वाले और सर्पों के आभूषण धारण करने वाले हैं जिनके श्रीविग्रह के सुन्दर वाम भागको गिरिराजकिशोरी उमा ने सुशोभित कर रखा है, कालकूट विष पीने के कारण जिनका कण्ठभाग नीले रंग का दिखाई देता है, जो एक हाथ में फरसा और दूसरे में मृग लिए रहते हैं, उन भगवान चन्द्रशेखर की मैं शरण लेता है। यमराज मेरा क्या करेगा?।।5।।

 

क्ष्वेडनीलगलं परश्वधधारिणं मृगधारिणं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:।।5।।

 

भेषजं भवरोगिणामखिलापदामपहारिणं

दक्षयज्ञविनाशिनं त्रिगुणात्मकं त्रिविलोचनम्।

 

भुक्तिमुक्तिफलप्रदं निखिलाघसंघनिबर्हणं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:।।6।।

 

भक्तवत्सलमर्चतां निधिमक्षयं हरिदम्बरं

सर्वभूतपतिं परात्परमप्रमेयमनूपमम्।

 

भूमिवारिनभोहुताशनसोमपालितस्वाकृतिं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:।।7।।

 

विष पीने के कारण जिनका कण्ठभाग नीले रंग का दिखाई देता है, जो एक हाथ में फरसा और दूसरे में मृग लिये रहते हैं, उन भगवान चंद्रशेखर की मैं शरण लेता हूं। यमराज मेरा क्या करेगा?  ।।5।।

 

जो जन्म-मरण के रोग से ग्रस्त पुरुषों के लिए औषध रूप हैं, समस्त आपत्तियों का निवारण और दक्ष यज्ञ का विनाश करने वाले हैं, सत्त्व आदि तीनों गुण जिनके स्वरूप हैं, जो तीन नेत्र धारण करते, भोग और मोक्षरूपी फल देते तथा संपूर्ण पाप राशि का संहार करते हैं, उन भगवान चन्द्रशेखर की मैं शरण लेता हूं। यमराज मेरा क्या करेगा?।।6।।

 

जो भक्तों पर दया करने वाले हैं, अपनी पूजा करने वाले मनुष्यों के लिए अक्षय निधि होते हुए भी जो स्वयं दिगम्बर रहते हैं, जो सब भूतों (प्राणियों) के स्वामी, परात्पर, अप्रमेय और उपमारहित हैं, पृथ्वी, जल, आकाश, अग्नि और चन्द्रमा के द्वारा जिनका श्रीविग्रह सुरक्षित है, उन भगवान् चन्द्रशेखर की मैं शरण लेता हूं। यमराज मेरा क्या करेगा?।।7।।

 

विश्वसृष्टिविधायिनं पुनरेव पालनतत्परं

संहरन्तमथ प्रपञ्चमशेषलोकनिवासिनम्

क्रीडयन्तमहर्निशं गणनाथयूथसमावृतं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः।।8।।

 

रुद्रं पशुपतिं स्थाणु नीलकण्ठमुमापतिम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।9।।

 

कालकण्ठं कलामूर्तिं कालाग्निं कालनाशनम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।10।।

 

जो ब्रह्मारूप से सम्पूर्ण विश्व की सृष्टि करते, फिर विष्णु रूप से सबके पालन में संलग्न रहते और अन्त में सारे प्रपंच का संहार करते हैं। सम्पूर्ण लोकों में जिनका निवास है तथा जो गणेशजी के पार्षदों से घिरकर दिन-रात भांति-भांति के खेल किया करते हैं, उन भगवान चन्द्रशेखर की मैं शरण लेता हूं। यमराज मेरा क्या करेगा?।।8।।

 

‘रु’ अर्थात दु:ख को दूर करने के कारण जिन्हें रुद्र कहते हैं, जो जीवरूपी पशुओं का पालन करने से पशुपति, स्थिर होने से स्थाणु, गले में नीला चिह्न धारण करने से नीलकण्ठ और भगवती उमा के स्वामी होने से उमापति नाम धारण करते हैं, उन भगवान शिव को मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूं। मृत्यु मेरा क्या कर लेगी?।।9।।

 

जिनके गले में काला दाग है, जो कलामूर्ति, कालाग्निस्वरूप और काल के नाशक हैं, उन भगवान शिव को मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूं। मृत्यु मेरा क्या कर लेगी?।।10।।

 

नीलकण्ठं विरुपाक्षं निर्मलं निरुपद्रवम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।11।।

 

वामदेवं महादेवं लोकनाथं जगद्गुरुम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।12।।

 

देवदेवं जगन्नाथं देवेशमृषभध्वजम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।13।।

 

अनन्तमव्ययं शान्तमक्षमालाधारं हरम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।14।।

 

जिनका कण्ठ नील और नेत्र विकराल होते हुए भी जो अत्यन्त निर्मल और उपद्रवरहित है, उन भगवान शिव को मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूं। मृत्यु मेरा क्या कर लेगी?।।11।।

 

जो वामदेव, महादेव, विश्वनाथ और जगद्गुरु नाम धारण करते हैं, उन भगवान शिव को मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूं। मृत्यु मेरा क्या कर लेगी?।।12।।

 

जो देवताओं के भी आराध्यदेव, जगत के स्वामी और देवताओं पर भी शासन करने वाले हैं, जिनकी ध्वजा पर वृषभ का चिह्न बना हुआ है, उन भगवान शिव को मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूं। मृत्यु मेरा क्या कर लेगी?।।13।।

 

जो अनन्त, अविकारी, शान्त, रुद्राक्ष मालाधारी और सबके दुःखों का हरण करने वाले हैं, उन भगवान शिव को मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूं। मृत्यु मेरा क्या कर लेगी?।।14।।

 

आनन्दं परमं नित्यं कैवल्यपदकारणम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।15।।

 

स्वर्गापवर्गदातारं सृष्टिस्थित्यन्तकारिणम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।16।।

 

जो परमानन्दस्वरूप, नित्य एवं कैवल्यपद-मोक्ष प्राप्ति के कारण हैं, उन भगवान शिव को मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूं। मृत्यु मेरा क्या कर लेगी?।।15।।

 

जो स्वर्ग और मोक्ष के दाता तथा सृष्टि, पालन और संहार के कर्ता हैं, उन भगवान शिव को मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूं। मृत्यु मेरा क्या कर लेगी?।।16।।

 

।।इस प्रकार श्री पद्ममहापुराणांतर्गत उत्तरखण्ड में श्रीमृत्युंजयस्तोत्र सम्पूर्ण हुआ।।

 

संदर्भ : गीता प्रेस गोरखपुर