Puja

भीष्म द्वादशी पर्व की पौराणिक कथा, यहां पढ़ें…

Bhishma Dwadashi Story 2024 
 

HIGHLIGHTS

 

• जया एकादशी के अगले दिन भीष्म द्वादशी व्रत किया जाता है।

• भीष्म पितामह की पौराणिक कथा।

• देवव्रत का भीष्म पितामह नाम कैसे पड़ा। 

ALSO READ: संत रविदास के 10 प्रसिद्ध दोहे
 

Bhishma Dwadashi Parv : भीष्म द्वादशी व्रत एकादशी के ठीक दूसरे दिन द्वादशी को किया जाता है। यह व्रत समस्त रोगों को मिटाता है तथा समस्त पापों का नाश होकर मनुष्य को अमोघ फल की प्राप्ति देता है। आइए जानते हैं यहां भीष्म द्वादशी पर्व के बारे में प्रचलित एवं पौराणिक कथा…

 

इसकी कथा के अनुसार राजा शांतनु की रानी गंगा ने देवव्रत नामक पुत्र को जन्म दिया और उसके जन्म के बाद गंगा शांतनु को छोड़कर चली जाती हैं, क्योंकि उन्होंने ऐसा वचन दिया था। शांतनु गंगा के वियोग में दुखी रहने लगते हैं। परंतु कुछ समय बीतने के बाद शांतनु गंगा नदी पार करने के लिए मत्स्य गंधा नाम की कन्या की नाव में बैठते हैं और उसके रूप-सौंदर्य पर मोहित हो जाते हैं।

 

राजा शांतनु कन्या के पिता के पास जाकर उनकी कन्या के साथ विवाह करने का प्रस्ताव रखते हैं। परंतु मत्स्य गंधा के पिता राजा शांतनु के समक्ष एक शर्त रखते हैं कि उनकी पुत्री को होने वाली संतान ही हस्तिनापुर राज्य की उत्तराधिकारी बनेगी, तभी यह विवाह हो सकता है। यही मत्स्य गंधा आगे चलकर सत्यवती नाम से प्रसिद्ध हुई। राजा शांतनु यह शर्त मानने से इंकार करते हैं, लेकिन वे चिंतित रहने लगते हैं। 

 

देवव्रत को जब पिता की चिंता का कारण मालूम पड़ता है तो वह अपने पिता के समक्ष आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेते हैं। पुत्र की इस प्रतिज्ञा को सुनकर राजा शांतनु उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान देते हैं। इस प्रतिज्ञा के कारण ही देवव्रत, भीष्म पितामह के नाम से प्रसिद्ध हुए। जब महाभारत का युद्ध होता है तो भीष्म पितामह कौरवों की तरफ से युद्ध लड़ रहे होते हैं और भीष्म पितामह के युद्ध कौशल से कौरव जीतने लगते हैं, तब भगवान श्रीकृष्ण एक चाल चलते हैं और शिखंडी को युद्ध में उनके समक्ष खड़ा कर देते हैं। 

 

देवव्रत की अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार वे शिखंडी पर शस्त्र न उठाने के कारण भीष्म युद्ध क्षेत्र में अपने शस्त्र त्याग देते हैं। जिससे अन्य योद्धा अवसर पाते ही उन पर तीरों की बौछार शुरू कर देते हैं। महाभारत के इस महान योद्धा ने शरशैय्या पर शयन किया। इसीलिए कहा जाता हैं कि सूर्य दक्षिणायन होने के कारण शास्त्रीय मतानुसार भीष्म ने अपने प्राण नहीं त्यागे और सूर्य के उत्तरायण होने पर अपने नश्वर शरीर का त्याग किया। 

 

उन्होंने अष्टमी को अपने प्राण त्याग दिए थे। उनके पूजन के लिए माघ मास की द्वादशी तिथि निश्चित की गई है, इसीलिए इस तिथि को भीष्म द्वादशी कहा जाता है। भगवान ने यह व्रत भीष्म पितामह को बताया था और उन्होंने इस व्रत का पालन किया था, जिससे इसका नाम भीष्म द्वादशी पडा। 

 

अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित  वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न सोर्स से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। सेहत  या ज्योतिष संबंधी किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।

ALSO READ: क्यों मनाते हैं भीष्म द्वादशी, जानें मान्यता, महत्व और पूजन का शुभ समय