Goddess Siddhidatri : नवरात्रि के अंतिम दिन देवी सिद्धिदात्री की पूजा-उपासना की जाती है। मां दुर्गा का यह नौंवा रूप कमल पर विराजमान चार भुजाओं वाली मां सिद्धिदात्री लाल साड़ी में विराजित हैं तथा इनके चारों हाथों में शंख, सुदर्शन चक्र, गदा और कमल रहता है।
मां सिद्धिदात्री की पहचान उनके चेहरे की मंद मुस्कान ही है। नवरात्रि के आखिरी दिन पूजी जाने वाली देवी सिद्धिदात्री को बैंगनी रंग बेहद पसंद होता है। शास्त्रों में इन्हें सिद्धि और मोक्ष की देवी माना जाता है। इस दिन घी का दीपक जलाने के साथ-साथ मां सिद्धिदात्री को कमल का फूल अर्पित करना शुभ माना जाता है।
मां सिद्धिदात्री कौन हैं : भगवान शिव ने माता सिद्धिदात्री की कृपा से ही आठ सिद्धियों को प्राप्त किया था। इन सिद्धियों में अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व शामिल हैं। इन्हीं माता की वजह से भगवान शिव को अर्द्धनारीश्वर नाम मिला, क्योंकि सिद्धिदात्री के कारण ही शिव जी का आधा शरीर देवी का बना। मान्यतानुसार जिस प्रकार भगवान शिव को इस देवी की कृपा से आठ सिद्धियों की प्राप्ति हुई, ठीक उसी तरह इनकी उपासना करने से अष्ट सिद्धि और नव निधि, बुद्धि और विवेक की प्राप्ति होती है।
नवमी तिथि पर किया जाता है कन्या पूजन : नवरात्रि के नौवें दिन मां सिद्धिदात्री का पूजन-अर्चन के पश्चात हवन, ब्राह्मण भोजन करवाकर पूर्ण होता है। साथ ही ‘ॐ सिद्धिदात्र्यै नम:’ मंत्र का जाप किया जाता है। इस दिन कई भक्त अपने घरों में कुंजिकाओं को बिठाते हैं और उन्हें भोजन कराते हैं तथा कुमारी पूजन के पश्चात उन्हें भेंट दक्षिणा आदि देकर बिदा करते हैं।
मां सिद्धिदात्री का नौंवे दिन का भोग क्या है : आज के दिन माता को नैवेद्य तथा भोग अर्पित किया जाता है। नवरात्रि की नवमी के दिन माता को तिल का भोग लगाकर ब्राह्मण को दान दिया जाता है। इससे मृत्यु भय से राहत मिलेगी। इसके अलावा जो भी फल या भोजन मां को अर्पित करें वो लाल वस्त्र में लपेट कर करना चाहिए। साथ ही जीवन में अचानक होने वाली अनहोनी घटनाओं से बचाव भी होता है। तथा इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है।
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