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31 अक्टूबर को ही दीपावली सिद्ध हो रही- ज्योतिषि प्रो. विनय कुमार पाण्डेय

Diwali 2024

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रख्यात ज्योतिषि एवं पूर्व विभागध्यक्ष ज्योतिष विभाग प्रोफेसर विनय कुमार पाण्डेय इस वर्ष कि दीपावली मनाने कि भ्रान्ति को स्पष्ट करते हुए बताया कि सनातन धर्म की व्रत पर्व आदि के निर्धारण संबंधी व्यवस्था में गणित द्वारा प्राप्त तिथि, ग्रह, नक्षत्रादि के मानों के आधार पर धर्मशास्त्र ग्रंथों में वर्णित नियमानुसार किसी भी व्रत पर्व आदि का निर्धारण किया जाता है जिसके अंतर्गत स्थान भेद से व्रत पर्व आदि के तिथियों में अंतर पड़ना भी स्वाभाविक है परंतु यदा कदा गणितीय मानो में भिन्नता या धर्मशास्त्रीय किसी एक भाग/ मत का ही अनुसरण करने से एक स्थान पर भी व्रत पर्व अलग-अलग दिखने लगते हैं।

13 अक्टूबर या 01 नवंबर को, 2024 में कब है दिवाली?

शस्त्र सम्मत 31 अक्टूबर को दिवाली मनाना सही

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रख्यात ज्योतिषि ने कहा 31 को दिवाली मनाना शास्त्र सम्मत

 

इतना ही नहीं कभी-कभी तो गणितीय मानों में सामानता तथा धर्मशास्त्रीय वचनों की उपलब्धता के बाद भी व्रत पर्वों की तिथियों में अंतर दृष्टिगत होने लगता है ऐसी ही स्थिति कुछ इस बार वर्ष 2024 के दीपावली के संदर्भ में बन रही है। लेकिन जिन पंचांगो में 1 नवंबर को दीपावली लिखा गया है उनके तिथि मानो को देखकर धर्मशास्त्रीय ग्रंथों के तत्संबंधी समस्त वाक्यों का अनुसरण एवं अनुशीलन करते हुए 31अक्टूबर को ही दीपावली सिद्ध हो रही है। अतः सभी विद्वतगण को पुनः एक बार इस पर विचार करना चाहिए क्योंकि इससे समाज में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो रही है और सनातन धर्म तथा शास्त्रों से लोगों का अविश्वास बढ़ रहा है। यदा-कदा हमारी किसी मानवीय भूल के कारण या धर्मशास्त्र के किसी एक भाग का अनुसरण करते हुए हम किसी व्रत पर्वों को लिख देते हैं परंतु अगर तत् संबंधित धर्मशास्त्रीय सभी उदाहरणों का अनुशीलन करते हुए अगर इनका निर्णय किया जाए तो वह उचित होगा।

 

सामान्यतया प्रदोषसमये लक्ष्मीं पूजयित्वा ततः क्रमात्। दीपवृक्षाश्चदातव्याः शक्त्यादेवगृहेषुच॥ तथा दीपान्दत्वा प्रदोषे तु लक्ष्मीं पूज्य यथा विधि। 

 

आदि भविष्य पुराण के वचनों का आश्रय लेकर हेमाद्रि ने कहा है कि अयं प्रदोषव्यापिग्राह्यः॥ यह सब निर्णय सिंधु का उद्धरण है। पुनः इसकी विवेचना के क्रम में वहां वर्णित है कि दिनद्वये सत्त्वे पर:।

 

इस स्थिति को और भी स्पष्ट करते हुए ग्रंथकार ने दंडैकरजनीयोगे दर्शः स्यात्तु परेऽहनि। तदाविहायपूर्वेद्युः परेऽह्निसुखरात्रिकेति। 

 

 

अर्थात् पूर्व और पर दिन प्रदोष काल में अमावस्या के रहने पर तथा दूसरे दिन अमावस्या का रजनी से न्यूनतम 1 दण्ड योग होने की स्थिति में दूसरे दिन दीपावली मनाना शास्त्रोचित होगा। परंतु इस संशय की स्थिति में दीपावली का स्पष्ट निर्णय देने से पहले उपर्युक्त दोनों स्थितियों को समझ लेना अति आवश्यक होगा जिसमें उभयदिन प्रदोष व्यापिनी अमावस्या तथा दूसरे दिन अमावस्या का रजनी के साथ योग वर्णित है।

 

प्रस्तुत प्रसंग में दिनद्वये प्रदोष सत्त्वे पर:। का उद्धरण देते हुए स्वयं निर्णय सिंधुकार ने कहा है कि 

(दंडैकरजनीयोगे दर्शः स्यात्तु परेऽहनि। तदाविहायपूर्वेद्युः परेऽह्निसुखरात्रिकेति।) इति वचनात्।

 

अतः इससे यह सिद्ध हो रहा है कि स्वयं निर्णयसिंधु कार ने दिनद्वये प्रदोष सत्त्वे पर: के लिए दंडैकरजनीयोगे…..को ही आधार बनाया है। तो क्या अमावस्या का प्रदोष काल में एक दण्ड व्यापित होना ही दंडैकरजनीयोग अर्थात् अमावस्या की रजनी में एक दण्ड व्याप्ति है। नहीं, अतः इसका निर्णय करने से पूर्व रजनी को समझना आवश्यक है। शास्त्र के अनुसार रजनी का तात्पर्य प्रदोष से नहीं अपितु प्रदोष काल के बाद से है और इसको स्पष्ट करते हुए तिथि निर्णय एवं पुरुषार्थ चिंतामणि आदि ग्रंथों में स्पष्ट रूप से वर्णित है कि सूर्यास्त के अनंतर तीन मुहूर्त तक प्रदोष एवं उसके बाद की रजनी संज्ञा होती है।

 

नक्षत्रदर्शनात्संध्या सायं तत्परतः स्थितम्।

तत्परा रजनी ज्ञेया पुरुषार्थ चिंतामणि।

उदयात् प्राक्तनी संध्या घटिकाद्वयमिष्यते। 

सायं सन्ध्या त्रिघटिका अस्तादुपरि भास्वतः॥ 

त्रिमुहूर्तः प्रदोषः स्याद् भानावस्तंगते सति। 

तत्परा रजनी प्रोक्ता तत्र कर्म परित्यजेत्॥

तिथिनिर्णय:।।

त्रियामां रजनीं प्राहुस्त्यक्त्वाद्यन्तचतुष्टयम्। 

नाडीनां तदुभे सन्ध्ये दिवसाद्यन्तसंज्ञके।। 

 

इन धर्मशास्त्रीय वचनों से यह स्पष्ट हो रहा है कि रजनी प्रदोष नहीं अपितु प्रदोष काल के बाद की संज्ञा है अतः दंडैकरजनीयोगे दर्शः स्यात्तु परेऽहनि। के अनुसार 1 को अमावस्या का रजनी से कोई योग भी नहीं हो रहा है। अतः जिन क्षेत्रों में 1 नवंबर को अमावस्या का प्रदोष के एक भाग से संगति हो भी रही है वहां पर रजनी से अमावस्या का किसी भी स्थिति में योग नहीं हो रहा है अतः उनके मत से भी अग्रिम दिन दीपावली नहीं होगी। इसको पुष्ट करने के लिए स्वयं कमलाकरभट ने भी लिखा है कि दिवोदास के ग्रंथ में प्रदोष को दीपावली का मुख्य कर्मकाल मानने के कारण उपर्युक्त विवेचना है। परंतु ब्रह्म पुराण के मत में…

 

अर्धरात्रे भ्रमत्येव लक्ष्मीराश्रयितुं गृहान्। 

अतःस्वलंकृतालिप्तादीपैर्जाग्रज्जनोत्सवाः। 

सुधाधवलि ताः कार्याः पुष्पमालोपशोभिताः इति। 

 

उपरोक्त के अनुसार दीपावली में प्रदोष तथा अर्धरात्रि उभय काल व्यापिनी अमावस्या उत्तम है, इसकी पुष्टि के लिए उन्होंने ब्रह्मपुराण के निम्न वाक्यों का उद्धरण देते हुए लिखा है कि–

 

अर्धरात्रे भ्रमत्येव लक्ष्मीराश्रयितुं गृहान्। 

अतः स्वलंकृता लिप्ता दीपैर्जाग्रज्जनोत्सवाः।। 

इति ब्राह्मोक्तेश्च प्रदोषार्धरात्रव्यापिनी मुख्या। 

एकैकव्याप्तौ परैव; प्रदोषस्य मुख्यत्वादर्धरात्रेऽनुष्ठेयाभावाच्च।

 

अर्थात् प्रदोष या अर्धरात्रि इन दोनों में से किसी एक में अमावस्या की व्याप्ति हो तो पूर्व दिन को छोड़कर अगले दिन ही दीपावली मनाई जानी चाहिए।

 

पुनः अपराह्ने प्रकर्तव्यं श्राद्धं पितृपरायणैः। प्रदोषसमये राजन्‌ कर्तव्यादीपमालिकेति क्रमः। को आधार बनाकर कुछ लोगों ने यह भी निर्धारित कर दिया है कि श्राद्ध इत्यादि करने के बाद ही प्रदोष कल में दीप मालिका पूजन होगा परंतु उनकी इन शंकाओं का निवारण पुरुषार्थ चिंतामणि एवं जय सिंह कल्पद्रुम आदि ग्रंथों में विस्तृत विवेचना के साथ कर दिया गया है कि तिथिमान वश पूर्व दिन दीपावली पूजन के उपरांत अग्रिम दिन भी पितृ श्राद्ध इत्यादि शास्त्र विहित है। तथा अपराह्ने प्रकर्तव्यं श्राद्धं पितृपरायणैः। प्रदोषसमये राजन्‌ कर्तव्यादीपमालिकेति क्रमः। जो कहा गया है वह उस दिन संपूर्ण तिथी प्राप्त होने की स्थिति का अनुवाद है कोई विधि नहीं। 

 

अतः केवल पूर्व दिन प्रदोष प्राप्त होने पर प्रथम दिन, केवल दूसरे दिन प्रदोष प्राप्त होने पर (पूर्व दिन अर्धरात्रि एवं दूसरे दिन प्रदोष) दूसरे दिन तथा पूर्व एवं पर दोनों ही दिन पूर्ण प्रदोष व्यापिनी अमावस्या के साथ दंडैकरजनीयोगे आदि को संगति लगने पर दूसरे दिन ही दीपावली मनाया जाना शास्त्रोचित है। परन्तु पूर्व दिन प्रदोष और अर्धरात्रि दोनों तथा पर दिन केवल प्रदोष के एक भाग में अमावस्या की प्राप्ति होने तथा दंडैक आदि से संगति नहीं होने पर पूर्व दिन ही दीपावली का पर्व मनाया जाना शत्रोचित है।

 

इस वर्ष पंचांगों में अमावस्या 31 अक्टूबर को पूर्ण प्रदोष काल में एवं 1 नवंबर को प्रदोष काल के कुछ भाग में ही प्राप्त हो रही है तथा उपर्युक्त धर्मशास्त्रीय वचनों की संगति नहीं लग रही है अतः ऐसी स्थिति में शास्त्रोक्त समग्र वचनों का अनुशीलन करते हुए 31 अक्टूबर 2024 को ही दीपावली मनाया जाना शास्त्र सम्मत है।

 

(विनय कुमार पांडेय से संदीप श्रीवास्तव की बातचीत पर आधारित)