Ahoi Ashtami
Ahoi Ashtami: अहोई अष्टमी का पर्व हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना के लिए महिलाएं अहोई माता की पूजा करती हैं। पुराणों और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अहोई माता को माता पार्वती का ही एक रूप माना जाता है।
अहोई माता का स्वरूप और धार्मिक महत्व
अहोई माता को माता पार्वती के रूप में पूजा जाता है, जो प्रेम, करुणा और शक्ति की प्रतीक हैं। उनके इस रूप की पूजा विशेष रूप से उन महिलाओं द्वारा की जाती है जो संतान की प्राप्ति या उनके दीर्घ जीवन की कामना करती हैं। अहोई माता का स्वरूप मातृत्व और संरक्षण का प्रतीक है। यह पर्व महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उनके संतान से जुड़े आशीर्वाद और सुख-समृद्धि का प्रतीक है।
अहोई अष्टमी व्रत की पूजा विधि
अहोई अष्टमी के दिन महिलाएं उपवास रखती हैं और शाम के समय अहोई माता की पूजा करती हैं। पूजा के लिए दीवार पर अहोई माता की छवि बनाई जाती है, जिसमें सात या आठ तारों की छवि भी होती है। पूजा के दौरान दीपक जलाया जाता है, कथा सुनाई जाती है और विशेष मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। यह पूजा न केवल संतान की लंबी आयु के लिए की जाती है, बल्कि परिवार की समृद्धि और कल्याण के लिए भी की जाती है।
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संतान के लिए अहोई माता का आशीर्वाद
अहोई माता की पूजा संतान की दीर्घायु और उन्नति के लिए की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो महिलाएं पूरी श्रद्धा और भक्ति से इस व्रत का पालन करती हैं, उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है और उनकी संतान का जीवन दीर्घायु और समृद्ध होता है। माता अहोई अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं और उन्हें सुख, शांति और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।
सुख-समृद्धि और परिवार का कल्याण
सिर्फ संतान की लंबी आयु ही नहीं, अहोई माता की पूजा करने से परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है। माता अहोई को प्रेम और करुणा की देवी के रूप में जाना जाता है, जो अपने भक्तों को हर संकट से बचाती हैं और उनके जीवन में शांति और समृद्धि का संचार करती हैं।
अहोई अष्टमी का पर्व माता अहोई के रूप में माता पार्वती की पूजा का विशेष दिन है। यह व्रत न केवल संतान के दीर्घायु और सुखी जीवन के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि परिवार की समृद्धि और कल्याण का भी प्रतीक है। अहोई माता की पूजा हर उस महिला के लिए लाभकारी मानी जाती है जो संतान की भलाई और अपने परिवार की समृद्धि की कामना करती है।
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