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भारत में ईसाई धर्म की शुरुआत कब हुई थी?

Jesus Christ

christian missionaries movement in india: ईसाई धर्म के संस्थापक ईसा मसीह हैं जिनका जन्म बेथलेहम में हुआ था। भारत में ईसाइयों की संख्या अनुमानित 2.78 करोड़ है। क्रिश्चियन मिशनरीज और चैरिटेबल ट्रस्ट के द्वारा धर्मांतरण के कारण यह संख्या इसे ज्यादा हो चली है। नागालैंड, मेघालय, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, केरल और गोवा जैसे भारतीय राज्यों में ईसाइयों की संख्या नजर आती है।

 

ईसाई प्रचारक सेंट थॉमस:

माना जाता है कि भारत में ईसाई धर्म की शुरुआत केरल के तटीय नगर क्रांगानोर में हुई जहां, किंवदंतियों के मुताबिक, ईसा के बारह प्रमुख शिष्यों में से एक सेंट थॉमस (थॉमस द एपोस्टल) ईस्वी सन 52 में पहुंचे थे। कहते हैं कि उन्होंने उस काल में सर्वप्रथम कुछ ब्राह्मणों को जादू दिखाकर ईसाई बनाया था। इसके बाद उन्होंने आदिवासियों को धर्मान्तरित किया था। दक्षिण भारत में सीरियाई ईसाई चर्च सेंट थॉमस के आगमन का संकेत देता है।

 

ईसाई प्रचारक सेंट फ्रांसिस :

इसके बाद सन् 1542 में सेंट फ्रांसिस जेवियर के आगमन के साथ भारत में रोमन कैथोलिक धर्म की स्‍थापना हुई जिन्होंने भारत के गरीब हिन्दू और आदिवासी इलाकों में जाकर लोगों को ईसाई धर्म की शिक्षा देकर ईसाई बनाने का कार्य शुरू किया। कुछ लोग उन पर सेवा की आड़ में भोलेभाले लोगों को ईसाई बनाने का आरोप लगाते रहे हैं, परंतु यह कितना सच है यह जानना मुश्‍किल है। हालांकि उस दौर में अधिकतर लोग गरीब थे जिन्हें भोजन और कपड़े की उम्मीद थी।

 

मुस्लिम काल में ईसाई धर्म:

16वीं सदी में पुर्तगालियों के साथ आए रोमन कैथोलिक धर्म प्रचारकों के माध्यम से उनका सम्पर्क पोप के कैथोलिक चर्च से हुआ। परन्तु भारत के कुछ इसाईयों ने पोप की सत्ता को अस्वीकृत करके ‘जेकोबाइट’ चर्च की स्थापना की। केरल में कैथोलिक चर्च से संबंधित तीन शाखाएठ दिखाई देती हैं। सीरियन मलाबारी, सीरियन मालाकारी और लैटिन- रोमन कैथोलिक चर्च की लैटिन शाखा के भी दो वर्ग दिखाई पड़ते हैं- गोवा, मंगलोर, महाराष्ट्रियन समूह, जो पश्चिमी विचारों से प्रभावित था, तथा तमिल समूह जो अपनी प्राचीन भाषा-संस्कृति से जुड़ा रहा। काका बेपतिस्टा, फादर स्टीफेंस (ख्रीस्ट पुराण के रचयिता), फादर दी नोबिली आदि दक्षिण भारत के प्रमुख ईसाई धर्म प्रचारक थे। उत्तर भारत में अकबर के दरबार में सर्व धर्म सभा में विचार-विमर्श हेतु जेसुइट फादर उपस्थित थे। उन्होंने आगरा में एक चर्च भी स्थापित किया था। भारत में प्रोटेस्टेंट धर्म का आगमन 1706 में हुआ। बी. जीगेनबाल्ग ने तमिलनाडु के ट्रंकबार में तथा विलियम केरी ने कलकत्ता के निकट सेरामपुर में लूथरन चर्च स्थापित किया।

अंग्रेज काल में ईसाई धर्म:

अंग्रेज काल में ईसाई मिशनरी इंस्ट इंडिया कंपनी सहित यूरोपीय व्यापारियों के साथ भारत आए। रोमन कैथोलिक मिशनरियों ने 16वीं और 17वीं शताब्दी में ईसाई धर्म के प्रचार के लिए काम किया। डेनमार्क तथा जर्मनी से आए प्रोटेस्टेंट मिशनरियों ने 18वीं सदी की शुरुआत से दक्षिण भारत में काम करना शुरू किया। वर्ष 1800 में बैपटिस्ट मिशनरियों ने श्रीरामपुर मुख्यालय से अपना काम शुरू किया। विलियम केरी, जोशुआ मार्शमेन तथा वार्ड शुरुआती दौर के पहले वैपटिस्ट ईसाई मिशनरी थे। वर्ष 1830 में स्कॉटलैंड की प्रेस्विटिरीयन मिशनरी के सदस्य एलेक्जेंडर डफ ने बंगाल में धर्म-परिवर्तन की अपनी गतिविधियाँ शुरू कीं।

 

शुरुआत में ईसाई मिशनरियों की गतिविधियाँ केवल दक्षिण भारत तक सीमित थीं। उत्तर भारत और बंगाल में ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों ने मिशनरियों की गतिविधियों को मान्यता नहीं दी। यहां के स्थानीय निवासियों के सामाजिक-धार्मिक मामलों में दखल नहीं देना उस समय कंपनी की नीति थी। उनका मानना था कि इस तरह के हस्तक्षेप से कंपनी के वाणिज्यिक उद्देश्यों पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। मिशनरियों की धर्म-परिवर्तन की गतिविधियों ने कंपनी के वित्तिय उद्येश्य की पूर्ति के लिए खतरा पैदा कर दिया था। परिणाम स्वरूप श्रीरामपुर में मिशनरियों को अपना मुख्‍याल शिफ्ट करना पड़ा। हालांकि 1900वीं सदी की शुरुआत में कंपनी और अंग्रेजों की नीति बदल गई। उन्होंने सभी देश के मिशनरियों को सहयोग देना प्रारंभ किया। 

 

चार्टर अधिनियम 1813 के द्वारा सभी को भारत में अपनी गतिविधियां संचालित करने के लिए छुट दी गई। इसकी पुष्टि वर्ष 1854 में सर चार्ल्स वुड की ओर से भारत भेजी गई। लिखित में आदेश प्राप्ति के बाद भारत में बड़े पैमाने पर मिशनरियों के स्कूल, कॉलेज और अस्पतालों को सरकार की ओर से विशेष अनुदान मिलने लगा। पूर्वात्तर राज्य और दक्षिण भारत में अधिक फंडिग की गई। भारत में धर्मान्तरित लोगों को ज्यादा महत्व दिया जाने लगा। स्कूल और कॉलेज में एडमिशन से लेकर कंपनी की या सरकारी नौकरी में प्राथमिकता दी जाने लगी। हालांकि यह सुविधा उन लोगों तक सीमित थी जो अभिजात्य वर्ग से आते थे।

 

इस तरह भारत में जब अंग्रेजों के काल में पूर्वोत्तर राज्य में मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड, पश्चिम बंगाल, गोवा, मुंबई और केरल पर ज्यादा फोकस किया गया। ईसाई धर्म के लाखों प्रचारकों ने इस धर्म को फैलाया। उस दौरान शासन की ओर से ईसाई बनने पर लोगों को कई तरह की रियायत मिल जाती थी। बहुतों को बड़े पद पर बैठा दिया जाता था साथ ही ग्रामिण क्षेत्रों में लोगों को जमींदार बना दिया जाता था। अंग्रेजों के काल में कॉन्वेंट स्कूल और चर्च के माध्यम से ईसाई संस्कृति और धर्म का व्यापक प्रचार और प्रसार हुआ। बाद में मदर टेरेसा के ट्रस्ट ने इस कार्य को जारी रखा।