25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्मोत्सव क्रिसमस के रूप में पूरी दुनिया में मनाया जाता है। ईसा मसीह का जन्म 6 ई.पू. हुआ था। ईसा मसीह को इब्रानी में येशु, यीशु या येशुआ कहते थे परंतु अंग्रेजी उच्चारण में यह जेशुआ हो गया। यही जेशुआ बिगड़कर जीसस हो गया। उन्हें नाजरथ का येशु कहते थे। उनका असली नाम येशु था। मूल रूप से वे एक यहूदी परिवार में जन्मे थे। आओ जानते हैं उनके जन्म की 10 रोचक बातें।ALSO READ: क्रिसमस पर ईसा मसीह का जन्मदिन रहता है या नहीं, 25 दिसंबर को चुनने के पीछे का इतिहास क्या है?
- ईसा मसीह का जन्म 25 दिसंबर 4 ईसा पूर्व हुआ
- उनका जन्म स्थान बेथलेम का एक अस्तबल है
- जन्म के पहले परियों और स्वर्गदूत ने आकर सूचन दी
1. परी ने कहा दिव्य बालक होगा : हजार वर्ष पूर्व की बात है। एक बढ़ई था जिसका नाम युसुफ था। वह इसराइल का नाजरथ नामक एक गांव में रहता था। युसुफ का विवाह मैरी के साथ हुआ था। एक दिन एक परी मैरी के सामने प्रकट हुई और उसने कहा आपके घर एक दिव्य बालक जन्म लेगा। वह एक मसीहा होगा जो दुनिया को बदल देगा। मैरी कुछ दिनों के बाद गर्भवती हुई। मदर मैरी या मरियम कुवांरी थी या नहीं इसको लेकर भी मतभेद हैं। मरियम योसेफ नामक बढ़ई की धर्म पत्नी थीं। कहते हैं कि कुवांरी अवस्था में ही वह परमेश्वर के प्रभाव से गर्भवती हो गई थीं और उन्होंने ईश्वर के पुत्र को जन्म दिया।
2. स्वर्गदूत गाब्रिएल ने दिया संदेश : यह भी कहा जाता है कि मरियम को यीशु के जन्म के पहले एक दिन स्वर्गदूत गाब्रिएल ने दर्शन देकर कहा था कि धन्य हैं आप स्त्रियों में, क्योंकि आप ईश्वर पुत्र की माता बनने के लिए चुनी गई हैं। यह सुनकर मदर मरियम चकित रह गई थीं। कहते हैं कि इसके बाद सम्राट ऑगस्टस के आदेश से राज्य में जनगणना प्रारंभ हुई तो सभी लोग येरुशलम में अपना नाम दर्ज कराने जा रहे थे। यीशु के माता-पिता भी नाजरथ से वहां जा रहे थे परंतु बीच बेथलेहम में ही माता मरियम ने एक बालक को जन्म दिया।ALSO READ: क्रिसमस : ईसा मसीह के जीवन की पहेलियाँ
3. अस्तबल में हुआ यीशु का जन्म: बेथलेहम शहर में जगनणना आयोजित की जा रही थी। राज्य में हर किसी को उसमें भाग लेकर अपना नाम लिखवाना था। इसीलिए मैरी भी अपने पति युसुफ के साथ बेथलेहम के लिए निकल पड़ी। उस वक्त बेथलेहम में बहुत भीड़ थी और हर कोई जनगणना में भाग लेने के लिए आया था। इसलिए इन दोनों को आराम करने के लिए कोई जगह नहीं मिली। अंत में उन्हें रात बिताने के लिए एक जगह मिल गई। एक गडरिये ने उन्हें अपने अस्तबल में रुकने की जगह दी। उसी रात उसी जगह पर युशी मसीहा का जन्म हुआ। सूखे घास के अलावा उनके पास कोई बिस्तर नहीं था। उनसे मिलने के लिए चरवाहों के अलावा कोई नहीं था।
4. तीन फरिस्तों ने कहा यह दुनिया का राजा होगा : इसी बीच बेथलेहेम से बहुत दूर तीन बुद्धिमान पुरुषों ने आसमान में चमकते हुए एक सितारे को देखा, जो कहीं जा रहा था। उन तीनों ने इसे दिव्य माना और वे भी उस सितारे के पीछे हो लिए। वह सितारा वहां पहुंचकर गायब हो गया जहां यीशु थे। वे तीन बुद्धिमान पुरुष यीशु से मिले और उन्हें आशीर्वाद दिया। उन्होंने चरवाहों को कहा कि ये बच्चा आगे चलकर यहूदी समुदाय का राजा बनेगा। ALSO READ: Christmas 2022 : ईसा मसीह ने किए थे ये 5 बड़े चमत्कार
5. राजा हेरोड ने माना शत्रु : चरवाहों के कारण सभी जगह ये खबर फैल गई कि यहूदियों के राजा ने जन्म लिया है। एक व्यक्ति इस खबर से खुश नहीं था, और वह था उस देश का राजा हेरोड। हेरोड को जब यह पता चला तो उसने सोच कि यह बच्चा तो अपना प्रतिद्वंदी है, लेकिन वह नहीं जानता था कि कौनसा दिव्य बच्चा प्रतिद्वंदी है। इसलिए उसने 2 साल की उम्र तक के सभी बच्चों को मारने का आदेश दे दिया। इस बात का पता चलते ही सौभाग्य से येशु का परिवार रातोरात मिस्र जा पहुंचा। वे राज की मृत्यु के बाद ही अपने घर वापस लौटे। यानी वे फिर से नाजरथ में जाकर बस गए।
6. कब हुआ था जन्म: मैथ्यू की गॉस्पेल के अनुसार यीशु का जन्म करीब 4 ईसा पूर्व हेरोड दि ग्रेट की डेथ के करीब 2 साल पहले हुए था। जबकि ल्यूक गॉस्पेल के अनुसार यीशु का जन्म 6 ईस्वी में हुआ था।
7. माता पिता पुन: लौटे नाजरथ: यीशु दूसरे बच्चों से अलग था। वह शास्त्रों के बारे में ज्ञान रखता था। वह शास्त्रों को पढ़ सकता था। वह शास्त्रों की व्याख्या और बहस करना भी जानता था। 12 साल की उम्र तक यीशु नाजरथ में ही रहते थे। इसके बाद वे कहां चले गए किसी को पता नहीं। यीशु जब 30 के हुए तब वे नाजरथ लौट आए।
8. 13 की उम्र के बाद यीशु कहीं चले गए तब 29 की उम्र में लौटे : ईसा मसीह 13 वर्ष की उम्र से लेकर 29 वर्ष की उम्र तक कहां रहे और क्या करते रहे, इसके बारे में कोई नहीं जानता। इसको लेकर भी मतभेद हैं। बाइबिल में इसका जिक्र नहीं मिलता है।
9. जन्म स्थान पर बना है चर्च: इतिहासकार कहते हैं कि ईसा का जन्मदिवस कब से मनाया जाने लगा यह अज्ञात है परंतु जन्म स्थान पर 333 ईस्वी में एक बेसिलिका बनाई गई थी। उसके बाद वहां क्रिसमय मानाने के लिए आने लगे। फिर यहां पर सबसे पहले 339 ईस्वी में एक चर्च पूरा किया गया। जिसे द चर्च ऑफ द नैटिविटी कहा जाने लगा।
10. 25 दिसंबर को सूर्य उपासना का त्योहार : 25 दिसंबर को उस दौर में रोमन लोग सूर्य उपासना का त्योहार मनाते थे। कहते हैं कि बाद में जब ईसाई धर्म का प्रचार हुआ तो कुछ लोग ईसा को सूर्य का अवतार मानकर इसी दिन उनकी पूजन करने लगे मगर इसे उन दिनों मान्यता नहीं मिल पाई। फिर बाद में इसी दिन को कब उनका जन्म दिवस घोषित कर दिया गया, इस पर मतभेद है।
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