Jivitputrika Vrat
Highlights
जितिया व्रत की कथा।
कब मनाया जाएगा जीवित्पुत्रिका व्रत।
जीवित्पुत्रिका व्रत की परंपराएं।
2024 Jivitputrika Vrat : हिंदू कैलेंडर के अनुसार आश्विन मास की कृष्ण की सप्तमी या अष्टमी तिथि पर जितिया व्रत रखा जाता है। इसे ही जिउतिया या जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहते हैं। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार वर्ष 2024 में जीवित्पुत्रिका या जितिया व्रत 25 सितंबर, दिन बुधवार को रखा जा रहा है। आश्विन कृष्ण अष्टमी पर विशेष रूप से मनाया जाने वाला यह व्रत उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में मनाया जाता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार यह व्रत संतान की लंबी आयु तथा सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है। माताएं इस दिन निर्जला व्रत रखकर भगवान जीमूतवाहन का विधिवत पूजन-अर्चन करती हैं। यह व्रत बच्चों की प्रसन्नता, उन्नति के लिए रखा जाता हैं तथा इस व्रत को रखने से संतान की उम्र लंबी होती है।
आइए इस लेख में जानते हैं पौराणिक कथा और परंपरा के बारे में
जितिया व्रत की महाभारत काल की कथा : Jivitputrika Vrat Katha
जितिया/ जीवित्पुत्रिका या जिउतिया व्रत की यह कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई है। जिसके अनुसार महाभारत के युद्ध के बाद अश्वथामा अपने पिता की मृत्यु की वजह से बहुत क्रोध में था। वह अपने पिता की मृत्यु का पांडवों से बदला लेना चाहता था। एक दिन उसने पांडवों के शिविर में घुस कर सोते हुए पांडवों के बच्चों को मार डाला। उसे लगा था कि ये पांडव हैं। लेकिन वो सब द्रौपदी के पांच बेटे थे। इस अपराध की वजह से अर्जुन ने उसे गिरफ्तार कर लिया और उसकी मणि छीन ली।
इससे आहत अश्वथामा ने उत्तरा के गर्भ में पल रही संतान को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया। लेकिन उत्तरा की संतान का जन्म लेना जरूरी था। जिस वजह से श्री कृष्ण ने अपने सभी पुण्य का फल उत्तरा की गर्भ में मरी संतान को दे दिया और वह जीवित हो गया।
भगवान श्री कृष्ण की कृपा से गर्भ में मरकर जीवित होने के वजह से इस बच्चे को जीवित्पुत्रिका नाम दिया गया। यही आगे चलकर राज परीक्षित बने। तभी से संतान की लंबी उम्र के लिए हर साल जिउतिया व्रत रखने की परंपरा को निभाया जाता है।
जिउतिया या जीवित्पुत्रिका व्रत कैसे शुरू हुआ, इस संबंध में एक और कथा मिलती है और उस कथा के अनुसार गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन ने नाग वंश की रक्षा के लिए स्वयं को पक्षीराज गरुड़ का भोजन बनने के लिए सहर्ष तैयार हो गए थे।
उन्होंने अपने साहस और परोपकार से शंखचूड़ नामक नाग का जीवन बचाया था। उनके इस कार्य से पक्षीराज गरुड़ बहुत प्रसन्न हुए थे और नागों को अपना भोजन न बनाने का वचन दिया था। पक्षीराज गरुड़ ने जीमूतवाहन को भी जीवनदान दिया था। इस तरह से जीमूतवाहन ने नाग वंश की रक्षा की थी।
इस घटना के बाद से ही हर वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जितिया व्रत या जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाने लगा।
10 परंपराएं :
1. सनातन धर्म में पूजा-पाठ के दौरान मांसाहार खाने की मनाही है, लेकिन बिहार में कई जगहों पर इस व्रत की शुरुआत मछली खाकर की जाती है।
2. पौराणिक कथाओं में परंपरा के पीछे जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा में वर्णित चील और सियार का होना माना जाता है।
3. कई स्थानों पर जीवित्पुत्रिका व्रत को रखने से पहले महिलाएं गेहूं के आटे की रोटियां खाने की बजाए मरुआ के आटे की रोटियां खाती हैं। ऐसा सदियों से होता चला आ रहा हैं, लेकिन इस परंपरा के पीछे का कारण ठीक से स्पष्ट नहीं है।
4. इस दिन माताएं उपवास रखकर अपने वंश की वृद्धि और प्रगति के लिए बांस के पत्रों से पूजन करती है।
5. जितिया व्रत को रखने से पहले नोनी का साग खाने की भी परंपरा है। इस संबंध में माना जाता हैं कि नोनी के साग में कैल्शियम और आयरन भरपूर मात्रा में होता है। जिसके कारण व्रतधारी को पोषक तत्वों की कमी महसूस नहीं होती है।
6. इस व्रत के पारण के बाद महिलाएं जितिया का लाल रंग का धागा गले में पहनती है तथा कई स्थानों पर व्रती महिलाएं जितिया का लॉकेट भी धारण करती हैं।
7. जीवित्पुत्रिका व्रत में पूजा के दौरान सरसों का तेल और खल चढ़ाने की मान्यता है और व्रत पारण के बाद यह तेल बच्चों के सिर पर आशीर्वाद के तौर पर लगाया जाता हैं।
8. जीवित्पुत्रिका व्रत संतान की लंबी उम्र और मंगल कामना के लिए हर साल परंपरा को निभाते हुए मनाया जाता है। यह व्रत छठ पर्व की तरह ही निर्जला और निराहार रह कर महिलाएं करती हैं।
9. जीवित्पुत्रिका व्रत से एक दिन पहले आश्विन कृष्ण सप्तमी को व्रती महिलाएं मड़ुआ की रोटी व नोनी की साग खाती हैं। रात को बने अच्छे पकवान में से पितरों, चील, सियार, गाय और कुत्ता का अंश निकाला जाता है।
10. जीवित्पुत्रिका या जिउतिया व्रत में सरगही या ओठगन की परंपरा भी है। इस व्रत में सतपुतिया की सब्जी का विशेष महत्व है।
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