Mahananda navami: मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को नंदा नवमी या महानंदा नवमी के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 2023 में 21 दिसंबर को नंदा नवमी का व्रत रखा जा रहा है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन सुहागिन महिलाएं दिनभर व्रत-उपवास रखकर रात्रि में चंद्रमा के दर्शन करने के उपरांत व्रत खोलती हैं। महानंदा नवमी के दिन माता पार्वती के ही एक अन्य स्वरूप देवी नंदा की पूजा की जाती है। साथ ही माता दुर्गा की पूजा करने से जीवन में शुभ फलों की प्राप्ति होती है। अत: इस दिन चंद्रमा, मां लक्ष्मी और दुर्गा देवी की उपासना का विशेष महत्व है।
आइए जानते हैं इस व्रत के बारे में…
महत्व : पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अगर किसी अज्ञात कारणों की वजह से जीवन में परेशानी, संकट का आभास होने लगे, सुख-समृद्धि, धन की कमी होने लगी हो तो महानंदा नवमी व्रत बहुत अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। इसीलिए सभी परेशानियों से मुक्ति के लिए नवमी के दिन महानंदा व्रत किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन माता लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा की जाती है। जीवन में परेशानियां अगर निरंतर बढ़ती हुई महसूस हो रही हैं और धन हानि हो रही हो तो ऐसे व्यक्तियों को यह व्रत करने से जीवन में सभी सुखों की तथा शुभ फल की प्राप्ति होती हैं।
यदि नवमी के दिन कुंवारी कन्या का पूजन करके उससे आशीर्वाद लेना विशेष शुभ माना गया है। अत: नवमी तिथि को कन्या भोज तथा उनके चरण अवश्य छूने चाहिए। महानंदा नवमी व्रत पर श्री की देवी लक्ष्मी जी का पूजन तथा उनके मंत्रों का जाप करने से गरीबी, दारिद्रय, दुख दूर होता है। इस दिन असहाय लोगों को दान करने से सुख-समृद्धि तथा विष्णु लोक मिलता है। मान्यतानुसार महानंदा नवमी व्रत करने वालों को स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होने लगती है।
आज के मुहूर्त :
राहुकाल-01:02 पी एम से 02:37 पी एम
गुलिक काल- 08:17 ए एम से 09:52 ए एम
यमगंड- 05:07 ए एम से 06:42 ए एम
अभिजित मुहूर्त-11:02 ए एम से 11:52 ए एम
अमृत काल- 11:20 ए एम से 12:52 पी एम
पूजा विधि-
– महानंदा नवमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में जागकर घर का कूड़ा-कचरा इकट्ठा करके सुपड़ी (सूपे) में रखकर घर के बाहर करना चाहिए। इसे अलक्ष्मी का विसर्जन कहा जाता है।
– फिर हाथ-पांव धोकर दरवाजे पर खड़े होकर श्री महालक्ष्मी का आवाह्न करना चाहिए।
– स्वच्छ धुले और सफेद वस्त्र धारण करके एक आसन बिछाकर स्थान ग्रहण करना चाहिए।
– उसके बाद एक पटिये पर लाल कपड़ा बिछाकर मां लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें।
– मां लक्ष्मी को कुमकुम, अक्षत, गुलाल, अबीर, हल्दी, मेहंदी चढ़ाएं तथा उनका पूजन करें।
– इस दिन पूजन स्थान के बीचोबीच गाय के घी का एक बड़ा अखंड दीया जलाना चाहिए तथा धूप बत्ती प्रज्ज्वलित करना चाहिए।
– आज ‘ॐ ह्रीं महालक्ष्म्यै नम:’ मंत्र का ज्यादा से ज्यादा जाप करना चाहिए।
– माता को सफेद मिठाई, पंचामृत, पंचमेवा, ऋतु फल, मखाने, बताशे आदि को भोग लगा कर रात्रि जागरण करें।
– रात्रि में श्री विष्णु-मां लक्ष्मी का पूजन करने के पश्चात व्रत का पारण करना चाहिए।
– इस दिन ‘श्री’ यानी महालक्ष्मी देवी की विधिवत पूजा कर व्रत-उपवास रखकर कुंवारी कन्याओं को भोजन कराना चाहिए।
– इस दिन मां लक्ष्मी के मंत्रों का जाप करके हवन करने से गरीबी दूर होकर धनलक्ष्मी का आगमन होता है तथा जीवन सुख-संपन्नता से भर जाता है।
मंत्र-
– ‘ॐ ऐं क्लीं सौ:।’
– ‘ॐ ऐं क्लीं महालक्ष्म्यै नम:।’
– ‘ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौं जगत्प्रसूत्यै नम:।’
– ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।’
– ‘ॐ ऐं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नम:।’
कथा-
महानंदा नवमी व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार एक समय की बात है कि एक साहूकार की बेटी पीपल की पूजा करती थी। उस पीपल में लक्ष्मी जी का वास था। लक्ष्मी जी ने साहूकार की बेटी से मित्रता कर ली। एक दिन लक्ष्मी जी ने साहूकार की बेटी को अपने घर ले जाकर खूब खिलाया-पिलाया और ढेर सारे उपहार दिए। जब वो लौटने लगी तो लक्ष्मी जी ने साहूकार की बेटी से पूछा कि तुम मुझे कब बुला रही हो?
अनमने भाव से उसने लक्ष्मी जी को अपने घर आने का निमंत्रण तो दे दिया किंतु वह उदास हो गई। साहूकार ने जब पूछा तो बेटी ने कहा कि लक्ष्मी जी की तुलना में हमारे यहां तो कुछ भी नहीं है। मैं उनकी खातिरदारी कैसे करूंगी? साहूकार ने कहा कि हमारे पास जो है, हम उसी से उनकी सेवा करेंगे। फिर बेटी ने चौका लगाया और चौमुखा दीपक जलाकर लक्ष्मी जी का नाम लेती हुई बैठ गई। तभी एक चील नौलखा हार लेकर वहां डाल गया।
उसे बेचकर बेटी ने सोने का थाल, शाल दुशाला और अनेक प्रकार के व्यंजनों की तैयारी की और लक्ष्मी जी के लिए सोने की चौकी भी लेकर आई। थोड़ी देर के बाद लक्ष्मी देवी गणेश जी के साथ पधारीं और उसकी सेवा से प्रसन्न होकर सब प्रकार की समृद्धि प्रदान की। अत: जो भक्त महानंदा नवमी के दिन व्रत रखकर श्री लक्ष्मी देवी का पूजन-अर्चन करता है उनके घर स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। तथा दरिद्रता और दुर्भाग्य दूर होता है।
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