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Navratri chaturthi devi Kushmanda: शारदीय नवरात्रि की चतुर्थी की देवी कूष्मांडा की पूजा विधि, मंत्र, आरती, कथा और शुभ मुहूर्त

Maa Kushmanda Puja Vidhi In Hindi: चैत्र या शारदीय नवरात्रि यानी नवदुर्गा में चौथे दिन चतुर्थी की देवी मां कूष्मांडा का पूजन किया जाता है। इसके बाद उनकी पौराणिक कथा या कहानी पढ़ी या सुनी जाती है। आओ जानते हैं माता कूष्मांडा की पावन कथा, पूजा, आरती, मंत्र सहित सभी कुछ।

 

चतुर्थी देवी कूष्मांडा की पूजा विधि और भोग

चतुर्थी देवी कूष्मांडा का बीज मंत्र और आरती

चतुर्थी देवी कूष्माण्डा की पौराणिक कथा

6 अक्टूबर 2024 शारदीय नवरात्रि चौथे दिन की देवी कूष्मांडा की पूजा का शुभ मुहूर्त:

प्रात: पूजा का मुहूर्त- प्रात: 04:38 से 06:16 के बीच।

अभिजित मुहूर्त: दोपहर 11:46 से 12:33 के बीच।

शाम की पूजा का मुहूर्त : शाम 06:02 से 07:16।

 

देवी कूष्मांडा का मंत्र:- 

सरल मंत्र- ‘ॐ कूष्माण्डायै नम:।।’

श्लोक:-

कुत्सित कूष्मा कूष्मा-त्रिविधतापयुत संसार,

स अण्डे मांसपेश्यामुदररूपायां यस्या सा कूष्मांडा।

 

माता कूष्मांडा का भोग: माता कूष्मांडा को मालपुए का भोग लगाकर किसी भी दुर्गा मंदिर में ब्राह्मणों को इसका प्रसाद देना चाहिए।

 

देवी कूष्मांडा देवी का स्वरूप : इस देवी की आठ भुजाएं हैं, इसलिए अष्टभुजा कहलाईं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है। इस देवी का वाहन सिंह है और इन्हें कुम्हड़े की बलि प्रिय है। संस्कृति में कुम्हड़े को कुष्मांड कहते हैं इसलिए इस देवी को कूष्मांडा। इनके शरीर की कांति और प्रभा सूर्य की भांति ही दैदीप्यमान है। इनके ही तेज से दसों दिशाएं आलोकित हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में इन्हीं का तेज व्याप्त है। इस देवी का वास सूर्यमंडल के भीतर लोक में है। सूर्यलोक में रहने की शक्ति क्षमता केवल इन्हीं में है।

देवी कूष्मांडा माता की कथा : देवी की कथा के अनुसार जब सृष्टि की रचना नहीं हुई थी तब उस समय चारों ओर अंधकार था। देवी कुष्मांडा जिनका मुखमंडल सैकड़ों सूर्य की प्रभा से प्रदिप्त है उस समय प्रकट हुई। उनके मुख पर बिखरी मुस्कुराहट से सृष्टि की पलकें झपकनी शुरू हो गयी और जिस प्रकार फूल में अण्ड का जन्म होता है उसी प्रकार कुसुम अर्थात फूल के समान माता की हंसी से सृष्टि में ब्रह्मण्ड का जन्म हुआ। अतः यह देवी कूष्माण्डा के रूप में विख्यात हुई। इस देवी का निवास सूर्यमण्डल के मध्य में है और यह सूर्य मंडल को अपने संकेत से नियंत्रित रखती हैं। वह देवी जिनके उदर में त्रिविध तापयुक्त संसार स्थित है वह कूष्माण्डा हैं। देवी कूष्माण्डा इस चराचार जगत की अधिष्ठात्री देवी हैं। नवरात्रि में चौथे दिन देवी को कूष्मांडा के रूप में पूजा जाता है। अपनी मंद, हल्की हंसी के द्वारा अण्ड यानी ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को कूष्मांडा नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने अपने ईषत्‌ हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसीलिए इसे सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है।

 

कूष्मांडा देवी की आरती:

कुष्मांडा जय जग सुखदानी।

मुझ पर दया करो महारानी॥

पिगंला ज्वालामुखी निराली।

शाकंबरी मां भोली भाली॥

लाखों नाम निराले तेरे ।

भक्त कई मतवाले तेरे॥

भीमा पर्वत पर है डेरा।

स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥

सबकी सुनती हो जगदंबे।

सुख पहुंचती हो मां अंबे॥

तेरे दर्शन का मैं प्यासा।

पूर्ण कर दो मेरी आशा॥

मां के मन में ममता भारी।

क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥

तेरे दर पर किया है डेरा।

दूर करो मां संकट मेरा॥

मेरे कारज पूरे कर दो।

मेरे तुम भंडारे भर दो॥

तेरा दास तुझे ही ध्याए।

भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥

कुष्मांडा जय जग सुखदानी।

मुझ पर दया करो महारानी॥ (समाप्त)

 

माता कूष्मांडा की पूजा विधि:

इस दिन पूजा में बैठने के लिए हरे रंग के आसन का प्रयोग करना बेहतर होता है।

देवी को लाल वस्त्र, लाल पुष्प, लाल चूड़ी भी अर्पित करना चाहिए।

मां कूष्मांडा को इस निवेदन के साथ जल पुष्प अर्पित करें कि, उनके आशीर्वाद से आपका और आपके स्वजनों का स्वास्थ्य अच्छा रहे। 

अगर आपके घर में कोई लंबे समय से बीमार है तो इस दिन मां से खास निवेदन कर उनके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करनी चाहिए।

देवी को पूरे मन से फूल, धूप, गंध, भोग चढ़ाएं।

मां कूष्मांडा को विविध प्रकार के फलों का भोग अपनी क्षमतानुसार लगाएं।

पूजा के बाद अपने से बड़ों को प्रणाम कर प्रसाद वितरित करें।