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Navratri Panchami devi Skanda Mata: शारदीय नवरात्रि की पंचमी की देवी स्कंदमाता की पूजा विधि, मंत्र, आरती, कथा और शुभ मुहूर्त

Maa Skanda Mata Puja Vidhi In Hindi: चैत्र या शारदीय नवरात्रि यानी नवदुर्गा में पांचवें दिन पंचमी की देवी मां स्कंद माता का पूजन किया जाता है। इसके बाद उनकी पौराणिक कथा या कहानी पढ़ी या सुनी जाती है। आओ जानते हैं माता स्कंदमाता की पावन कथा, पूजा, आरती, मंत्र सहित सभी कुछ।

 

पंचमी देवी स्कंदमाता की पूजा विधि और भोग

पंचमी देवी स्कंद माता का बीज मंत्र और आरती

पंचमी देवी स्कंद माता की पौराणिक कथा

 

7 अक्टूबर 2024 शारदीय नवरात्रि पांचवें दिन की देवी स्कंद माता की पूजा का शुभ मुहूर्त:

प्रात: पूजा का मुहूर्त- प्रात: 04:39 से 06:17 के बीच।

अभिजित मुहूर्त: दोपहर 11:45 से 12:32 के बीच।

शाम की पूजा का मुहूर्त : शाम 06:00 से 07:14।

 

देवी स्कंदमाता का मंत्र:- 

सरल मंत्र- ॐ देवी स्कंदमातायै नमः॥

श्लोक:-

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥

 

माता स्कंदमाता का भोग: पंचमी तिथि के दिन पूजा करके भगवती दुर्गा को केले का भोग लगाना चाहिए और यह प्रसाद ब्राह्मण को दे देना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य की बुद्धि का विकास होता है।

 

स्कंद माता देवी का स्वरूप : नवरात्रि में पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा होती है। स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से अभिहित किया गया है। इनके विग्रह में भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं। इन देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण एकदम शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है। कहते हैं कि इनकी कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है।

Maa Skanda Mata

स्कंद माता माता की कथा : पुराणों की कथा के अनुसार धरती पर तारकासुर का आतंक था। उसने देवलोक पर भी कब्जा कर लिया था। सभी देवता ब्रह्मा जी की शरण में गए तो उन्होंने कहा कि शिवपुत्र ही इसका अंत कर सकेगा। फिर शिवजी की तपस्या भंग की गई और बाद में माता पार्वती का शिवजी से विवाह हुआ। फिर माता पार्वती को एक पुत्र हुआ जिसका नाम स्कंद रखा गया जिसका दूसरा नाम कार्तिकेय भी था। माता पार्वती ने अपने पुत्र स्कंद को युद्ध के लिए प्रशिक्षित करने के लिए स्कंद माता का रूप धारण किया और उन्होंने उन्हें अस्त्र शस्त्र विद्या सिखाई। स्कंदमाता से युद्ध प्रशिक्षण लेने के बाद भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर के साथ युद्ध किया और बाद में उनका अंत किया था। स्कंदमाता को इन नामों से भी जाना जाता है। स्कंदमाता, हिमालय की पुत्री पार्वती हैं। इन्हें माहेश्वरी और गौरी के नाम से भी जाना जाता है।

 

देवी स्कंद माता की आरती

जय तेरी हो स्कंद माता 

पांचवां नाम तुम्हारा आता 

सब के मन की जानन हारी 

जग जननी सब की महतारी 

तेरी ज्योत जलाता रहूं मैं 

हरदम तुम्हें ध्याता रहूं मैं   

कई नामों से तुझे पुकारा 

मुझे एक है तेरा सहारा 

कहीं पहाड़ों पर है डेरा 

कई शहरो मैं तेरा बसेरा 

हर मंदिर में तेरे नजारे 

गुण गाए तेरे भगत प्यारे 

भक्ति अपनी मुझे दिला दो 

शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो 

इंद्र आदि देवता मिल सारे 

करे पुकार तुम्हारे द्वारे 

दुष्ट दैत्य जब चढ़ कर आए 

तुम ही खंडा हाथ उठाए 

दास को सदा बचाने आई 

‘चमन’ की आस पुराने आई…। (समाप्त)

 

माता स्कंद माता की पूजा विधि:

सबसे पहले चौकी (बाजोट) पर स्कंदमाता की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।

इसके बाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें।

चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर कलश रखें।

उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी), सप्त घृत मातृका (सात सिंदूर की बिंदी लगाएं) की स्थापना भी करें।

इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा स्कंदमाता सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें।

इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दूर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें। 

तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।