vat savitri vrat
Vat Savitri Vrat 2024 niyam: ज्येष्ठ माह की अमावस्या पर वट सावित्री व्रत रखा जाएगा एवं शनि जयंती का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन अमावस्या, शनि जयंती और वट सावित्री का व्रत यह तीन खास दिन एक साथ रहते हैं। ऐसे में भूलकर भी कोई गलती को तो पछताना पड़ सकता है। जानिए कि वे कौन सी गलतियां हैं। वट पूजा का शुभ मुहूर्त:- पूजा मुहूर्त प्रातः 11 बजकर 52 मिनट से दोपहर 12 बजकर 48 मिनट तक रहेगा।
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अमावस्या तिथि प्रारम्भ- 05 जून 2024 को शाम 07:54 से
अमावस्या तिथि समाप्त- 06 जून 2024 को शाम 06:07 तक
ब्रह्म मुहूर्त : प्रात: 04:02 से 04:42 तक।
प्रातः सन्ध्या पूजा और आरती मुहूर्त: प्रात: 04:22 से 05:23 तक।ALSO READ: Vat savitri vrat 2024: वट सावित्री अमावस्या व्रत पर इन मंत्रों से करें पूजा तो मिलेगा तुरंत फल
1. इस दिन किसी भी प्रकार का तामसिक भोजन न करें और किसी भी प्रकार का नशा न करें।
2. इस दिन अपने जीवनसाथी से किसी भी प्रकार का झगड़ा न करें। और जीवनभर साथ देने का संकल्प लें।
3. इस दिन भूलकर भी नीले, काले, कत्थई, जामुनी और सफेद रंग धारथ न करें। इसे अशुभ माना जाता है।
4. इस दिन भूलकर भी बाल न कटवाएं और न ही नाखून न काटें।
5. इस दिन यदि व्रत रख रहे हैं तो कथा जरूर सुनें। कथा के बीच से उठकर न जाएं।
6. इस दिन वट वृक्ष की परिक्रमा के दौरान अपना पैर दूसरों को न लगने दें। इससे पूजा खंडित हो सकती है।
7. इस दिन किसी को भी कोई अपशब्द न कहें।
8. इस दिन साफ स्वच्छ रहकर पवित्र बने रहें।
Vat Savitri Vrat
वट सावित्री व्रत पूजा विधि- Vat Savitri Vrat puja vidhi
वट सावित्री व्रत के दिन व्रतधारी सुबह घर की साफ-सफाई करके नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
फिर पूरे घर में पवित्र जल का छिड़काव करें। तत्पश्चात बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्मा जी की मूर्ति की स्थापना करें।
ब्रह्मा के वाम पार्श्व में सावित्री की मूर्ति स्थापित करें। इसके बाद इसी प्रकार दूसरी टोकरी में सत्यवान तथा सावित्री की मूर्ति की स्थापना करें।
इन टोकरियों को वट वृक्ष के नीचे ले जाकर रखें। इसके बाद ब्रह्मा जी तथा सावित्री का पूजन करें।
फिर ‘अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते। पुत्रान् पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तुते।।’ श्लोक से सावित्री को अर्घ्य दें।
तत्पश्चात सावित्री तथा सत्यवान की पूजा करके बड़ की जड़ में पानी दें।
फिर ‘यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोऽसि त्वं महीतले। तथा पुत्रैश्च पौत्रैश्च सम्पन्नं कुरु मा सदा।।’ श्लोक से वटवृक्ष से प्रार्थना करें।
पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप का प्रयोग करें।
जल से वट वृक्ष को सींचकर उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर 3 बार परिक्रमा करें।
बड़ के पत्तों के गहने पहनकर वट सावित्री की कथा सुनें।
भीगे हुए चनों का बायना निकालकर, नकद रुपए रखकर सासू जी के चरण स्पर्श करें।
यदि सास वहां न हो तो बायना बनाकर उन तक पहुंचाएं।
पूजा समाप्ति पर ब्राह्मणों को वस्त्र तथा फल आदि वस्तुएं बांस के पात्र में रखकर दान करें।
फिर- ‘मम वैधव्यादिसकलदोषपरिहारार्थं ब्रह्मसावित्रीप्रीत्यर्थं,सत्यवत्सावित्रीप्रीत्यर्थं च वटसावित्रीव्रतमहं करिष्ये।’ बोलते हुए उपवास का संकल्प लेकर व्रत रखें।
फिर वट वृक्ष के नीचे सावित्री-सत्यवान की कथा को पढ़ें, सुनें अथवा सुनाएं।
मान्यानुसार इस तरह पूजन करने से मनवांछित फल प्राप्त होता है।
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