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कालरात्रि माता को क्या चढ़ाएं?

maa kalratri

kalratri mata ki puja kaise kare: नवरात्रि के सातवें दिन यानी सप्तमी की माता कालरात्रि की पूजा इस बार 10 अक्टूबर 2024 को होगी। 9 अक्टूबर को दोपहर 12:14 पर सप्तमी प्रारंभ हो जाएगी और अगले दिन 10 अक्टूबर को दोपहर 12:32 पर समाप्त होगी। उदयातिथि के अनुसार 10 अक्टूबर गुरुवार के दिन सप्तमी का पूजन होगा। आओ जानते हैं कि सप्तमी की माता कालरात्रि को क्या चढ़ाया जाता है।ALSO READ: kalratri ki Katha: नवदुर्गा नवरात्रि की सप्तमी की देवी मां कालरात्रि की कथा कहानी

कालरात्रि माता को गुड़ का भोग लगाएं

माता कालरात्रि को रातरानी का फूल अर्पित करें

मां कालरात्रि को नीला रंग पसंद है इसलिए नीली चुनर अर्पित करें

 

मां कालरात्रि माता को क्या चढ़ाएं?

– नवरात्रि में सातवें दिन की नवरात्रि पर मां कालरात्रि को गुड़ का नैवेद्य चढ़ाने व उसे ब्राह्मण को दान करने से शोक से मुक्ति मिलती है।

– आकस्मिक आने वाले संकटों से रक्षा भी होती है। अत: इस दिन गुड़ का भोग लगाकर ब्राह्मण को दान अवश्य करें।

– जितने गुड़ का भोग लगाया है उसका आधा भाग परिवार में बांट देना चाहिए और आधा गुड़ किसी ब्राह्मण को दान कर देना चाहिए।

– इसके अलावा मां कालरात्रि को रातरानी का लाल फूल चढाएं। रातरानी नहीं मिले तो लाल फूल अर्पित करें।

– पूजा के दौरान माता कालरा‍त्रि को चुनरी भी चढ़ाएं।

– नवरात्रि की सप्तमी तिथि को मां कालरात्रि के पूजन के दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त हो जाएं। 

– अब रोली, अक्षत, दीप, धूप अर्पित करें। 

– गुड़ का भोग अर्पित करें। अंत में मां की आरती करें। 

– इसके साथ ही दुर्गा सप्तशती, दुर्गा चालीसा तथा मंत्र जपें। 

– इस दिन लाल कंबल के आसन तथा लाला चंदन की माला से मां कालरात्रि के मंत्रों का जाप करें। 

– अगर लाला चंदन की माला उपलब्ध न हो तो रूद्राक्ष की माला का उपयोग कर सकते हैं।

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नवरात्रि की सप्तमी की देवी मां कालरात्रि की पौराणिक कथा:-

पौराणिक कथा के अनुसार रक्तबीज नामक राक्षस ने देववा और मनुष्य सभी त्रस्त थे। रक्तबीज राक्षस की विशेषता यह थी कि जैसे ही उसके रक्त की बूंद धरती पर गिरती तो उसके जैसा एक और राक्षस पैदा हो जाता था। इस राक्षस से परेशान होकर समस्या का हल जानने सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे। भगवान शिव को पता था कि इसका वध अंत में देव पार्वती ही करेंगी। भगवान शिव ने माता से अनुरोध किया। इसके बाद मां पार्वती ने स्वंय शक्ति व तेज से मां कालरात्रि को उत्पन्न किया। इसके बाद जब मां ने दैत्य रक्तबीज का अंत किया और उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को मां कालरात्रि ने जमीन पर गिरने से पहले ही अपने मुख में भर लिया। इस रूप में मां पार्वती कालरात्रि कहलाई।