Puja

नव संवत् पर संस्कृति का सादर वंदन करें

Gudi Padwa 2023 
 

नवरात्र हवन के झोंके, सुरभित करते जन-मन को।

है शक्तिपूत भारत, अब कुचलो आतंकी फन को।।

 

नव संवत् पर संस्कृति का, सादर वंदन करते हैं।

हो अमित ख्याति भारत की, हम अभिनंदन करते हैं।।

 

22 मार्च से विक्रम संवत् 2080 का प्रारंभ हो गया है। विक्रम संवत् को नवसंवत्सर भी कहा जाता है। संवत्सर 5 प्रकार के होते हैं जिनमें सौर, चंद्र, नक्षत्र, सावन और अधिमास सम्मिलित हैं। मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ एवं मीन नामक 12 राशियां सूर्य वर्ष के महीने हैं।

सूर्य का वर्ष 365 दिन का होता है। इसका प्रारंभ सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने से होता है। चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, अग्रहायण, पौष, माघ और फाल्गुन चंद्र वर्ष के महीने हैं।

 

चंद्र वर्ष 355 दिन का होता है। इस प्रकार इन दोनों वर्षों में 10 दिन का अंतर हो जाता है। चंद्र माह के बढ़े हुए दिनों को ही अधिमास या मलमास कहा जाता है।

नक्षत्र माह 27 दिन का होता है जिन्हें अश्विन नक्षत्र, भरणी नक्षत्र, कृत्तिका नक्षत्र, रोहिणी नक्षत्र, मृगशिरा नक्षत्र, आर्द्रा नक्षत्र, पुनर्वसु नक्षत्र, पुष्य नक्षत्र, आश्लेषा नक्षत्र, मघा नक्षत्र, पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र, हस्त नक्षत्र, चित्रा नक्षत्र, स्वाति नक्षत्र, विशाखा नक्षत्र, अनुराधा नक्षत्र, ज्येष्ठा नक्षत्र, मूल नक्षत्र, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र, श्रवण नक्षत्र, धनिष्ठा नक्षत्र, शतभिषा नक्षत्र, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र व रेवती नक्षत्र कहा जाता है। सावन वर्ष में 360 दिन होते हैं। इसका 1 महीना 30 दिन का होता है।

 

भारतीय संस्कृति में विक्रम संवत् का बहुत महत्व है। चैत्र का महीना भारतीय कैलेंडर के हिसाब से वर्ष का प्रथम महीना है। नवीन संवत्सर के संबंध में अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। वैदिक पुराण एवं शास्त्रों के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि को आदिशक्ति प्रकट हुई थीं। आदिशक्ति के आदेश पर ब्रह्मा ने सृष्टि की प्रारंभ की थी इसीलिए इस दिन को अनादिकाल से नववर्ष के रूप में जाना जाता है।

 

मान्यता यह भी है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। इसी दिन सतयुग का प्रारंभ हुआ था। मान्यता है कि इसी दिन सम्राट विक्रमादित्य ने अपना राज्य स्थापित किया था। श्रीराम का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था। युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था। नवरात्र भी इसी दिन से प्रारंभ होते हैं। इसी तिथि को राजा विक्रमादित्य ने शकों पर विजय प्राप्त की थी।

 

विजय को चिरस्थायी बनाने के लिए उन्होंने विक्रम संवत् का शुभारंभ किया था, तभी से विक्रम संवत् चली आ रही है। इसी दिन से महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीने और वर्ष की गणना करके पंचांग की रचना की थी। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का ऐतिहासिक महत्व भी है। स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन आर्य समाज की स्थापना की थी। इस दिन महर्षि गौतम जयंती मनाई जाती है। इस दिन संघ संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्मदिवस भी मनाया जाता है।

 

सृष्टि की सर्वाधिक उत्कृष्ट कालगणना का श्रीगणेश भारतीय ऋषियों ने अति प्राचीन काल से ही कर दिया था। तद्नुसार हमारे सौरमंडल की आयु लगभग 4 अरब 32 करोड़ वर्ष है। आधुनिक विज्ञान भी कार्बन डेटिंग और हॉफ लाइफ पीरियड की सहायता से इसे लगभग 4 अरब वर्ष पुराना मान रहा है।

 

इतना ही नहीं, श्रीमद्भागवत पुराण, श्री मार्कंडेय पुराण और ब्रह्म पुराण के अनुसार अभिशेत् बाराह कल्प चल रहा है और 1 कल्प में 1 हजार चतुरयुग होते हैं। जिस दिन सृष्टि का प्रारंभ हुआ, वह आज ही का पवित्र दिन था। इसी कारण मदुराई के परम पावन शक्तिपीठ मीनाक्षी देवी के मंदिर में चैत्र पर्व मनाने की परंपरा बन गई।

 

भारतीय महीनों का नामकरण भी बड़ा रोचक है अर्थात जिस महीने की पूर्णिमा जिस नक्षत्र में पड़ती है, उसी के नाम पर उस महीने का नामकरण किया गया है। उदाहरण के लिए इस महीने की पूर्णिमा चित्रा नक्षत्र में है इसलिए इसे चैत्र महीने का नाम दिया गया। क्रांति वृत्त पर 12 महीने की सीमाएं तय करने के लिए आकाश में 30-30 अंश के 12 भाग किए गए और उनके नाम भी तारा मंडलों की आकृतियों के आधार पर रखे गए।

इस प्रकार 12 राशियां बनीं। चूंकि सूर्य क्रांति मंडल के ठीक केंद्र में नहीं है, अत: कोणों के निकट धरती, सूर्य की प्रदक्षिणा 28 दिन में कर लेती है और अधिक भाग वाले पक्ष में 32 दिन लगते हैं इसलिए प्रति 3 वर्ष में 1 मास अधिक हो जाता है।

 

भारतीय कालगणना में इतनी वैज्ञानिक व्यवस्था है कि शताब्दियों तक 1 क्षण का भी अंतर नहीं पड़ता जबकि पश्चिमी कालगणना में वर्ष के 365.2422 दिन को 30 और 31 के हिसाब से 12 महीनों में विभक्त करते हैं। इस प्रकार प्रत्येक 4 वर्ष में फरवरी महीने को ‘लीप ईयर’ घोषित कर देते हैं। तब भी 9 मिनट 11 सेकंड का समय बच जाता है तो प्रत्येक 400 वर्षों में भी 1 दिन बढ़ाना पड़ता है तब भी पूर्णांकन नहीं हो पाता।

 

अभी कुछ वर्ष पूर्व ही पेरिस की अंतरराष्ट्रीय परमाणु घड़ी को 1 सेकंड स्लो कर दिया गया। फिर भी 22 सेकंड का समय अधिक चल रहा है। यह पेरिस की वही प्रयोगशाला है, जहां के सीजीएस सिस्टम से संसारभर के सारे मानक तय किए जाते हैं। रोमन कैलेंडर में तो पहले 10 ही महीने होते थे। किंगनुमापा जूलियस ने 355 दिनों का ही वर्ष माना था जिसे जूलियस सीजर ने 365 दिन घोषित कर दिया और उसी के नाम पर 1 महीना जुलाई बनाया गया।

 

उसके 100 वर्ष पश्चात किंग अगस्ट्स के नाम पर एक और महीना अगस्ट अर्थात अगस्त भी बढ़ाया गया। चूंकि ये दोनों राजा थे इसलिए इनके नाम वाले महीनों के दिन 31 ही रखे गए। आज के इस वैज्ञानिक युग में भी यह कितनी हास्यास्पद बात है कि लगातार 2 महीनों के दिनों की संख्या समान हैं जबकि अन्य महीनों में ऐसा नहीं है।

 

यही नहीं जिसे हम अंग्रेजी कैलेंडर का 9वां महीना सितंबर कहते हैं, 10वां महीना अक्टूबर कहते हैं, 11वां महीना नवंबर और 12वां महीना दिसंबर है। इनके शब्दों के अर्थ भी लैटिन भाषा में 7, 8, 9 और 10 होते हैं। भाषा विज्ञानियों के अनुसार भारतीय कालगणना पूरे विश्व में व्याप्त थी और सचमुच सितंबर का अर्थ सप्ताम्बर था, आकाश का 7वां भाग। उसी प्रकार अक्टूबर अष्टाम्बर, नवंबर तो नवमअम्बर और दिसंबर दशाम्बर है।

 

वर्ष 1608 में एक संवैधानिक परिवर्तन द्वारा 1 जनवरी को नववर्ष घोषित किया गया। जेनदअवेस्ता के अनुसार धरती की आयु लगभग 12 हजार वर्ष है। चीनी कैलेंडर लगभग 1 करोड़ वर्ष पुराना मानता है। चालडियन कैलेंडर धरती को लगभग 2 करोड़ 15 लाख वर्ष पुराना मानता है। फीनीसयन इसे लगभग 30 हजार वर्ष की बताते हैं। सिसरो के अनुसार यह लगभग 4 लाख 80 हजार वर्ष पुरानी है। सूर्य सिद्धांत और सिद्धांत शिरोमाणि आदि ग्रंथों में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा रविवार का दिन ही सृष्टि का प्रथम दिन माना गया है।

 

संस्कृत के ‘होरा’ शब्द से ही अंग्रेजी का ऑवर (Hour) शब्द बना है। इस प्रकार यह सिद्ध हो रहा है कि वर्ष प्रतिपदा ही नववर्ष का प्रथम दिन है। 1 जनवरी को नववर्ष मनाने वाले दोहरी भूल के शिकार होते हैं, क्योंकि भारत में जब 31 दिसंबर की रात को 12 बजता है तो ब्रिटेन में सायंकाल होता है, जो कि नववर्ष की पहली सुबह हो ही नहीं सकती। और जब उनका 1 जनवरी का सूर्योदय होता है तो यहां के Happy New Year मनाने वाले रात्रिभर जागने के कारण सो रहे होते हैं। ऐसी स्थिति में उनके लिए सवेरे नहा-धोकर भगवान सूर्य की पूजा करना तो अत्यंत दुष्कर कार्य है।

 

परंतु भारतीय नववर्ष में वातावरण अत्यंत मनोहारी रहता है। केवल मनुष्य ही नहीं, अपितु जड़-चेतना, नर-नाग, यक्ष-रक्ष, किन्नर-गंधर्व, पशु-पक्षी, लता-पादप, नदी-नद, देवी-देव, मानव से समष्टि तक सब प्रसन्न होकर उस परम शक्ति के स्वागत में सन्नद्ध रहते हैं।

 

नववर्ष पर दिवस सुनहले, रात रूपहली, उषा सांझ की लाली छन-छनकर पत्तों में बनती हुई चांदनी जाली कितनी मनोहारी लगती है। शीतल मंद सुगंध पवन वातावरण में हवन की सुरभि कर देते हैं। ऐसे ही शुभ वातावरण में अखिल लोकनायक श्रीराम का अवतार होता है।

 

उल्लेखनीय है कि ज्योतिष विद्या में ग्रह, ऋतु, मास, तिथि एवं पक्ष आदि की गणना भी चैत्र प्रतिपदा से ही की जाती है। मान्यता है कि नवसंवत्सर के दिन नीम की कोमल पत्तियों और पुष्पों का मिश्रण बनाकर उसमें काली मिर्च, नमक, हींग, मिश्री, जीरा और अजवाइन मिलाकर उसका सेवन करने से शरीर स्वस्थ रहता है। इस दिन आंवले का सेवन भी बहुत लाभदायक बताया गया है। माना जाता है कि आंवला नवमी को जगत् पिता ने सृष्टि पर पहला सृजन पौधे के रूप में किया था। यह पौधा आंवले का था। इस तिथि को पवित्र माना जाता है। इस दिन मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है।

 

नि:संदेह जब भारतीय नववर्ष का प्रारंभ होता है तो चहुंओर प्रकृति चहक उठती है। भारत की बात ही निराली है।

 

कवि श्री जयशंकर प्रसाद के शब्दों में-

 

अरुण यह मधुमय देश हमारा,

जहां पहुंच अनजान क्षितिज को

मिलता एक सहारा,

अरुण यह मधुमय देश हमारा।

 

इसमें संदेह नहीं कि आज हमारे दैनिक जीवन में अंग्रेजी कैलेंडर का बहुत प्रचलन है, परंतु हमारे तीज-त्योहार, व्रत-उपवास, रामनवमी-जन्माष्टमी, गृह प्रवेश, विवाह तथा अन्य शुभ कार्यों के शुभ मुहूर्त आदि सभी आयोजन भारतीय कैलेंडर अर्थात हिन्दू पंचांग के अनुसार ही देखे जाते हैं।

 

आइए, इस शुभ अवसर पर हम भारत को पुन: जगत् गुरु के पद पर आसीन करने में कृतसंकल्पित हों।

 

(लेखक ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और मीडिया’ विषय पर पीएचडी किए हैं।)

Gudi padwa 2023 

ALSO READ: भारतीय इतिहास की बड़ी घटना थी विक्रम संवत् 2000 का पूरा होना, विक्रम के पराक्रम का परचम लहरा उठा था

ALSO READ: गणगौर कब है 2023 : पूर्णिमा से शुरू होकर चैत्र मास की तृतीया तिथि तक चलेगा गणगौर का पर्व