Puja

महानंदा नवमी कैसे मनाई जाती है? जानें पूजा विधि, महत्व और कथा

Mahananda navami 2025: महानंदा नवमी एक हिन्दू त्योहार है जो माघ महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। महानंदा नवमी पर्व विशेषकर उत्तरी-पूर्वी भारत, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में इसे बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। धार्मिक मान्यतानुसार महानंदा नवमी का पूजन माघ, भाद्रपद और मार्गशीर्ष माह के शुक्ल नवमी तिथि पर किया जाता है। 

 

महानंदा नवमी का महत्व: महानंदा नवमी का व्रत करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति आती है। यह व्रत देवी नंदा को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का एक उत्तम तरीका है। यह त्योहार देवी नंदा को समर्पित है, जो माता पार्वती का ही एक रूप हैं। इस दिन, भक्त देवी नंदा की पूजा करते हैं और उनसे आशीर्वाद मांगते हैं। वर्ष 2025 में महानंदा नवमी का त्योहार 06 फरवरी, दिन गुरुवार को मनाया जा रहा है। 

 

महानंदा नवमी की पूजा विधि:

• सबसे पहले, सुबह उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें।

• पूजा स्थल को साफ करें और वहां एक चौकी स्थापित करें।

• चौकी पर देवी नंदा की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।

• उन्हें फूल, फल, मिठाई, धूप और दीप अर्पित करें।

• देवी नंदा के मंत्रों का जाप करें।

• कथा पढ़ें या सुनें।

• आरती करें।

• फिर सभी को प्रसाद वितरित करें।

• गरीबों और जरूरतमंदों को दान करें।

• व्रत रखें।

• महानंदा नवमी के मंत्र: – ‘ॐ नमो भगवते नन्दायै’ तथा ‘ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नन्दादेव्यै नम:’ का अधिक से अधिक जाप करें।

 

महानंदा नवमी की कथा: श्री महानंदा नवमी व्रत कथा के अनुसार एक समय की बात है कि एक साहूकार की बेटी पीपल की पूजा करती थी। उस पीपल में लक्ष्मी जी का वास था। लक्ष्मीजी ने साहूकार की बेटी से मित्रता कर ली। एक दिन लक्ष्मी जी ने साहूकार की बेटी को अपने घर ले जाकर खूब खिलाया-पिलाया और ढेर सारे उपहार दिए। जब वो लौटने लगी तो लक्ष्मी जी ने साहूकार की बेटी से पूछा कि तुम मुझे कब बुला रही हो?

 

अनमने भाव से उसने लक्ष्मी जी को अपने घर आने का निमंत्रण तो दे दिया किंतु वह उदास हो गई। साहूकार ने जब पूछा तो बेटी ने कहा कि लक्ष्मी जी की तुलना में हमारे यहां तो कुछ भी नहीं है। मैं उनकी खातिरदारी कैसे करूंगी? साहूकार ने कहा कि हमारे पास जो है, हम उसी से उनकी सेवा करेंगे। फिर बेटी ने चौका लगाया और चौमुख दीपक जलाकर लक्ष्मी जी का नाम लेती हुई बैठ गई। तभी एक चील नौलखा हार लेकर वहां डाल गया। उसे बेचकर बेटी ने सोने का थाल, शाल दुशाला और अनेक प्रकार के व्यंजनों की तैयारी की और लक्ष्मीजी के लिए सोने की चौकी भी लेकर आई।

 

थोड़ी देर के बाद लक्ष्मी जी गणेश जी के साथ पधारीं और उसकी सेवा से प्रसन्न होकर सब प्रकार की समृद्धि प्रदान की। अत: माना जाता है कि जो व्यक्ति महानंदा नवमी के दिन यह व्रत रखकर श्री देवी लक्ष्मी जी का पूजन-अर्चन करता है उनके घर स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है तथा दरिद्रता से मुक्ति मिलती है तथा दुर्भाग्य दूर होता है।


अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न सोर्स से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। सेहत या ज्योतिष संबंधी किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। इस कंटेंट को जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है जिसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।